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________________ महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-काव्य-ग्रन्थों के संक्षिप्त कथासार १६ नृतीय सर्ग एक दिन जयकुमार राजसभा में बना हुअा था। वहां काशीनरेश का दूत प्राया । जयकुमार को प्राज्ञा से उसने काशीनरेश का संदेश कहा कि श्रेष्ठ मनुष्यों बाली काशीनगरी के राजा की प्राजा से मैं आपकी सेवा में प्राया हूँ। उनकी एक पुत्री है- सुलोचना, जो उनकी सुप्रभा नाम की रानी से उत्पन्न हुई है । सुलोचना प्रद्भुत रूप और गुणों की स्वामिनी है। उसका विवाह वह मंत्रियों की सलाह से स्वयंवरविधि से करना चाहते हैं । काशीनगरी के ही एक स्थल पर देव द्वारा (पूर्वजन्म में काशीनरेश का भाई) श्रीसर्वतोभद्रक नाम का श्रेष्ठ सभामण्डप बनाया गया है । उस नगरी को विभिन्न प्रकार से सजाया भी गया है। अतः सुलोचनास्वयंवर के उपलक्ष्य में पाप भी काशी यात्रा करें। काशीनरेश का संदेश कह कर दूत चुप हो गया। वहीं का वृत्तान्त सुनकर जयकुमार का मन प्रसन्न भोर शरीर पुलकित हो गया। उन्होंने अपने वक्षःस्थल का हार उपहार रूप में दूत को दे दिया । , तत्पश्चात् अपनी सेना सजाकर जयकमार काशीनगरी की ओर चल पड़ा। जब वह काशीनगरी पहुंचा, तब काशीनरेश ने उसका स्वागत किया। चतुर्थ सर्ग काशीनरेश के यहाँ सुलोचना-स्वयंवर-समारोह होगा; यह समाचार अयोध्या नरेश भरत के पास पहुँचा । भरत ने यह समाचार अपने पुत्र अर्ककीर्ति को सुनाया। प्रकीति ने स्वयंवर-समारोह में जाने की इच्छा प्रकट की और पिता से अनुमति मांगी। उनके सुमति नाम के मंत्री ने कहा कि वहाँ बिना बुलाये नहीं जाना चाहिये । किन्तु दुर्मति नाम के मंत्री ने जाने के सम्बन्ध में प्रपनी सहमति प्रकट की। इतने में ही काशीनरेश ने वहां पहँचकर समारोह में उपस्थित होने का निमन्त्रण दिया। अपने सभासदों से विचार-विमर्श के पश्चात् अर्ककीति भी स्वयंवरसमारोह में भाग लेने की इच्छा से काशी पहुंचा। पंचम सर्ग स्वयंवर-समारोह में अनेक देशों से कुलीन राजकुमार कन्या का वरण करने की इच्छा से पहुँचे । काशीनरेश ने उन सबका स्वागत किया। जैसे ही जयकुमार सभा-मण्डर में पहुँचा, अन्य सभी उपस्थित जनों का मन उसे देखकर प्रतिद्वन्द्विता से परिपूर्ण हो गया। राजा के यहां उपस्थित देव (जो पहले काशीनरेश का भाई था) ने सुलोचना को सभामण्डप में चलने का आदेश दिया। महेन्द्रदत्त कंचुकी द्वारा निर्दिष्ट मार्ग से सुलोचना प्रपनी सखियों के साथ जिनेन्द्रदेव का पूजन करने के लिए गई; तत्पश्चात् सभामण्डप में पहुंची।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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