________________
द्वितीय अध्याय महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-काव्यग्रन्थों के
संक्षिप्त कथासार जयोदय महाकाव्य का संक्षिप्त कथासार
प्रथम सर्ग प्राचीनकाल में हस्तिनापुर में जयकुमार नामक एक राजा राज्य करता था। वह कोतिमान्, श्रीमान, विद्वान, बुद्धिमान, सौन्दर्यवान् भाग्यवान् एवं अत्यन्त प्रतापवान् राजा था। एक दिन उसके नगर के उद्यान में किसी तपस्वी का प्रागमन हुमा । उनके आगमन का समाचार सुनकर राजा जयकुमार भी उनके दर्शन के लिए गया। मुनि के दर्शन पाकर वह अत्यधिक हर्षित हुप्रा । उसने उनकी स्तुति को और नम्रतापूर्वक कर्तव्यपथप्रदर्शन हेतु निवेदन किया।
द्वितीय सर्ग ___ मुनि ने जयकुमार को गृहस्थ-धर्म के साथ-साथ राजा के कर्तव्यों का भी उपदेश दिया। मुनि के वचनों को सुनकर जयकुमार का शरीर रोमाजिरत और अन्तःकरणा निर्मल हो गया। उसने भक्तिपूर्वक शिर झुकाकर मुनि को प्रणाम किया और उनकी प्राज्ञा से बाहर आया। जयकुमार के साथ एक सपिणी ने भी मुनि से धर्मोपदेश सुना था । जब जयकुमार बाहर नाया तो उसने देखा कि वह सर्पिणी किसी अन्य सर्प के साथ रमण कर रही थी । यह देखकर अपने हाथ के कमल से जयकुमार ने उस सपिणी को पीटा । जय कुमार को चेष्टा देखक र अन्य लोगों ने सपिणी को प्रहारों से मार डाला । तत्पश्चात् देवी के रूप में उत्पन्न होकर उस सर्पिणी ने जाकर अपने पति नागकुमार से जयकुमार के विरुद्ध वचन कहे। उस मूर्ख सर्प ने अपनी स्त्री के कथन का विश्वास कर लिया और जयकु मार को मारने की इच्छा से चल पड़ा । हस्तिनापुर में जयकुमार के यहां जाकर जब उसने देखा कि जयकुमार अपनी स्त्रियों को सारी घटना सुनाते हुये स्त्रियों के कौटिल्य की निन्दा कर रहा है, तब घटना की वास्तविकता का ज्ञान होने पर उसने अपनी स्त्री की निन्दा की। उसने जयकुमार के सामने प्राकर सारा वृत्तान्त सत्य-सत्य कहा और जयकुमार के प्रति मन में भक्ति को धारण करके उसको आज्ञा पाकर वहाँ से चला गया ।