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महाकवि ज्ञानसागर का जीवन-वृत्तान्त नसीराबाद माकर रहने लगे। मुनि श्रीपाश्वसागर जी एक दिन छोड़कर प्राहार ग्रहण करते थे। इसी बीच १५ मई सन् १९७३ ई० को श्रीपाश्वंसागर जी व्याधि से पीड़ित हो गये। तब प्राचार्य ज्ञानसागर ने श्रीपाश्वसागर जी को सल्लेखमा धारण कराई । फलस्वरूप प्राचार्य ज्ञानसागर के पूर्व ही १६ मई सन् १९७३ ई. को प्रातः ७ बजकर ४० मिनट पर पार्श्वसागर जी का समाधिमरण हो गया।'
इस प्रकार धीरे-धीरे ज्ञानसागर जी महाराज में शान्ति, निराकुलता, सहिष्णुता एवं धीरता के लक्षण दृष्टिगोचर होने लगे । २८ मई सन् १९७३ ई. को उन्होंने सभी प्रकार के माहार-पानादि का परित्याग कर दिया। समाधि की अवस्था में मुनि श्री के प्रिय शिष्य प्राचार्य विद्यासागर बी एवं क्षुल्लक स्वरूपानन्द जी निरन्तर उनके समीप रहे एवं उनकी समाधिमरण की वेला में उनके सेवक बने । अन्त में ज्येष्ठ कृष्ण १५ विक्रम संवत् २०२३ शुक्रवार, तदनुसार दिनांक ७ जून सन् १९७३ ई. को दिन में १० बजकर • मिनट पर नसीराबाद नगर में समाधिमरण द्वारा हमारे मालोच्य महाकवि ज्ञानसागर जी महाराज ने अपने पापिव शरीर को त्याग दिया।
वास्तव में त्याग-तपस्या, उदारता, साहित्यसर्जना मादि गुणों की सालात मूर्ति महाकवि प्राचार्य मुनि श्रीज्ञानसागर जी महाराज एवं उनके कार्य स्तुत्य, अनुकरणीय एवं स्वर्णाक्षरों में लेखनीय है ।
१. मुनिसंघव्यवस्था समिति, नसीराबाद, (राज.), श्रीज्ञानसागर जी महाराज
का संक्षिप्त जीवनपरिचय, पृ० सं० ४ २. (क) मुनिसंघ व्यवस्थासमिति नसीराबाद (राज.), श्रीज्ञानसागर जी
महाराज का संक्षिप्त जीवन परिचय, पृ० सं०४ (ब) दिगम्बर जैन समाज, ब्यावर, स्मारिका, पृ० सं १३
(ग) पं० चम्पालाल जैन, बाहुबलीसन्देश में से। - (प) ताराचन्द गंगवाल, बाहुबलीसन्देश में से, पृ० सं० २७ ३. (क) पं० पम्पालाल जैन, बाहुबलीसन्देश में से। (ब) 'दो हजार पर तीस की संवद, मृत्यु को करके माह्वान । कुम्ण ज्येष्ठ प्रमावस के दिन, स्वर्गलोक को किया प्रयाण ॥'
--प्रभुदयाल जैन, बाहुबलीसन्देश पृ० सं०१६