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________________ महाकवि ज्ञानसागर के काम्य-एक अध्ययन सन् १९७२ ई० में मुनि श्री का चातुर्मास नसीराबाद में हुमा ।' प्राचार्य मुनि श्री को चारित्र-चक्रवर्ती-पद की प्राप्ति - स्वरूपानन्द जी की दीक्षा के अवसर पर सन् १९७२ ई० में ही महाकवि ज्ञानसागर को जैन समाज ने चारित्र-चक्रवर्ती का पद प्रदान किया। प्राचार्य मुनि श्री ज्ञानसागर का त्याग महाकवि ज्ञानसागर जी महाराज का शरीर क्षीणता को प्राप्त हो रहा था। अब उनके समक्ष अपना उत्तराधिकारी चुनने की समस्या थी। अपने शिष्यों में उन्हें मुनि श्री १०८ विद्यासागर जी ही सर्वश्रेष्ठ लगे। फलस्वरूप उन्होंने दिनांक २२ नवम्बर, सन् १९७२ ई० (मार्गशीर्ष कृष्णा द्वितीया वि० सं० २०२०) को अपना पद अपने शिष्य मुनि श्री १०८ विद्यासागर जी को सौंप दिया। प्राचार्य पद का उत्तरदायित्व छोड़कर ज्ञानसागर जी पूर्णरूपेण वैराग्य, तपश्चरण एवं सल्लेखना में सन्नद हो गये। इस समय उन्होंने जल पोर रस पर ही शरीर धारण करना शुरू कर दिया पोर खाद्य-सामग्री का सदा के लिए परित्याग कर दिया। सल्लेखना एवं समाधिमरण इसी बीच मदनगंज (किशनगढ़) निवासी श्री १०८ मुनि पार्श्व सागर जी महाराज अपनी सल्लेखना में ज्ञानसागर की का सान्निध्य पाने की कामना से १. पं० चम्पालाल जैन, बाहुवलीसन्देश, पृ० सं० ४० २. मुनिसंघ व्यवस्थासमिति, नसीराबाद (राज.), श्रीज्ञानसागर जी महाराज का संक्षिप्त जीवन परिचय, प० सं० ४ ३. (क) वही। (ख) दिगम्बर जैन समाज, ब्यावर, स्मारिका, प.० सं० १३ (ग) पं० चम्पालाल जैन, बाहुबली में से । (घ) 'नश्वर देह क्षीणता लखकर, कर दीना फिर पद परित्याग । 'मुनि विद्या प्राचार्य बनाकर, व्रत सल्लेखन पथ पग लागू ॥ -प्रभुदयाल जैन, बाहुबलीसन्देश, पृ० सं० १५ वही। ५. (क) पं. चम्पालाल जैन, बाहुबली सन्देश में से । (ख) मुनिसंघव्यवस्थासमिति, नसीराबाद, (गज०), श्री ज्ञानसागर जी महाराज का संक्षिप्त जीवन परिचय, पृ० सं०४
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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