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महाकवि मानसागर का बोवन वृत्तान्त समय व्यतीत होता था। वह दिन में एक ही बार माहार एवं जल ग्रहण करते थे। पाहार के नाम पर थोड़ा अन्न एवं भामरंस या दूध ही लेते थे। इस समय वह सस्वशक्ति से पूर्णतया सम्पन्न थे। उनके अध्ययन-अध्यापन का कार्यक्रम प्राण के अध्यापक एवं प्रध्येतामों के लिए पाश्चर्य की वस्तु होगी। प्राचार्य ज्ञानसागर जी का संघ में पढ़ने का कार्यक्रम इस प्रकार रहा करता था:
(क) प्रात: ५-३० ले ६-३० तक अध्यात्मतरंगिणी भोर समयसारकलश। (ख) प्रातः ७ से ८ तक प्रमेयरत्नमाला। (ग) प्रात: ८ से १ तक समयसार । (घ) १०-३० से ११.३० तक प्रष्टसाहस्री । (1) मध्याह्न १ से २ तक कातन्त्ररूपमाला व्याकरण । (च) मध्याह्न ३ से ४ तक पंचास्तिकाय । (घ) सायं ४ से ५ तक पंचतन्त्र । (ज) सायं ५ से ६ तक जैनेन्द्र व्याकरण ।'
महाकवि ज्ञानसागर के सान्निध्य में रहने वाले व्यक्तियों के कपनानुसार उनका हस्तलेख सुन्दर एवं सुस्पष्ट था। उन्होंने कभी भी ख्याति की कामना नहीं की । इसी कारण अपने साहित्य एवं दर्शन के ग्रन्थ-समूह का प्रकाशन कराने के प्रति वह उदासीन हो रहे ।
इनके प्रभावशाली व्यक्तित्व एवं वक्तृत्व शंली ने अनेक व्यक्तियों को प्रभावित किया। श्री प्रभयलाल जैन, श्री पन्नालाल साहित्याचार्य, श्री स्वरूपचन्द्र कासलीवाल', श्री छगनलाल पाटणी, वैद्य बटेश्वर दयाल बकरिया इत्यादि व्यक्तियों ने जब-जब महाकवि, प्राचार्य मुनि श्री के दर्शन किये, तब-तब उनसे कुछ-न-कुछ मान प्राप्त किया।
१.। (क) श्री पं. चम्पालाल जैन, जैन-सिद्धान्त, पु. सं. ३ (ब) डॉ. विद्यापर जोहरापुरकर एवं गं. कस्तूरचन्द कासलीवान,
वीरशासन के प्रभावक भाचार्य, पृ० सं० २७. २. स्वरूपानन्द जी, बाहुबलीसन्देश, पृ० सं०५
४. पं.चम्पालाल जैन, बाहुबलीसंदेश में से । ५. वही,
पृष्ठ सं० १७ ६. वही,
पृष्ठ सं० २१ पृष्ठ सं० २६.३१ पृष्ठ सं०१४