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श्री ज्ञानसागर जी से क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की । "
मुनि श्री १०८ श्री विजयसागर जी, ऐलक श्री १०५ श्री सन्मति सागर जी, श्री १०५ क्षुल्लक, संभवसागर जो धीर क्षुल्लक सुखसागर जी ने कब-कब दीक्षा ग्रहण की ? यह बताना कठिन है । केवल प्रमुख शिष्यों में इनकी गणना ही उल्लिखित हुई है ।
मुनि श्री ज्ञानसागर को प्राचार्य पद की प्राप्ति
श्री विवेकसागर के दीक्षा ग्रहण के अवसर पर जैन समाज ने ७ फरवरी सन् १९६९ ई० में मुनि श्री ज्ञानसागर जी को प्राचार्य पद से सुशोभित किया। सन् १९७० ई० में प्राचार्य मुनि श्री ज्ञानसागर जी महाराज का चातुर्मास रेनवाल (किशनगढ़) में सम्पन्न हुभ्रा । ४
महाकवि ज्ञानसागर के काव्य- एक अध्ययन
इस प्रकार प्रात्मकल्याण की भोर उन्मुख दूसरों को भी इसी मार्ग की प्रेरणा देने वाले महाकवि प्राचार्य ज्ञानसागर की अवस्था लगभग ८० वर्ष हो गई । इस अवस्था में भी गौरवणं भोर तपस्या के फलस्वरूप तेजस्वी व्यक्तित्व वाले प्राचार्य ज्ञानसागर जी के अध्ययन-अध्यापन में पूर्ण विराम नहीं लगा। संघ में रहने वाले व्यक्तियों को निरन्तर पढ़ाने, साहित्य रचना करने प्रादि में ही उनका
१. 'दो हजार छब्बीस साल में, धर्मवृद्धि को भारी । 'ज्ञानसिंधु' प्राचार्य शरण में, सप्तम प्रतिमा धारी ॥ साढ़ सुदी दशमी को, प्रजमेर में हुए निहाल हैं । क्षुल्लक दीक्षा लेते देखोजी 'जमनालाल' हैं ।'
प्रभुदयाल जैन, जैन सिद्धान्त, पृ० सं० ५
२. (क) मुनिसंघव्यवस्थासमिति, नसीराबाद ( राज०), श्री ज्ञानसागर जी महाराज का संक्षिप्त जीवन परिचय, पृ० सं० ३
(ख) 'परम शिष्य मुनि 'विद्यासागर',
ऐलक 'सन्मति', मुनि 'विवेक' ।
क्षुल्लक 'संभव' 'विजय' प्ररु 'सुख' पे हैं 'स्वरूप' लाखों में एक ॥'
- प्रभुदयाल जैन बाहुबलीसन्देश, पृ० सं० १५
३. (क) मुनिसंघव्यवस्थासमिति, नसीराबाद (राज०), श्री ज्ञानसावर जो का संक्षिप्त जीवन परिचय, पृ० सं० ४
(ख) 'जैन समाज संघ एकत्रित पद प्राचार्य नसीराबाद ।
४.
दो हजार पच्चीस की संवत्, दिया हवं से कर जब गाद ॥' - प्रभुदयाल जैन, बाहुबलीसन्देश, पृ० सं० १५
पं० चम्पालाल जैन, बाहुबलीसन्देश, पु० सं० ३४