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महाकविज्ञानसागर का जीवन वृत्तान्त
श्री ज्ञानसागर के सान्निध्य की प्राप्ति हुई।' सात फरवरी सन् १९६६ ई० को नसीराबाद में इन्होंने मुनि श्री ज्ञानसागर जी से मुनि-दीक्षा ग्रहण की। ३. बी १०८ श्री विवेकसागर जी
इन्होंने नसीराबाद में ७ फरवरी सन् १९६६ ई० को मुनि श्री ज्ञानसागर जी से मुनि-दीक्षा ग्रहण की। ४. क्षुल्लक श्री स्वरूपानन्द जी
मुनि श्री विद्यासागर जी के दीक्षा ग्रहण के अवसर पर दीपचन्द नामक युवक मुनि श्री ज्ञानसागर जी से बहुत प्रभावित हुआ। भक्तिवश उसने मुनि श्री के पर दबाये । सन् १९६६ ई० में ही इस युवक ने व्यावर जाकर मुनि श्री से दीक्षा को याचना की। तत्पश्चात् बी० काम. प्रथम वर्ष की परीक्षा और २२-५ सन् १९६६ ई. को मुनि श्री ज्ञानसागर जी से प्राजीवन ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकार कर लिया। २० अक्तूबर सन् १९७२ ई० को मुनि ज्ञानसागर जी ने ब्रह्मचारी दीपचन्द. को क्षुल्लक दीक्षा देकर क्षुल्लक स्वरूपानन्द नाम दिया। ५. ब्रह्मबारी जमनालाल जो
इन्होंने दिनांक १४ जुलाई सन् १९७० ई० (वि० संवत् २०२६) को मुनि
१. (क) श्री इन्द्रप्रभाकर जैन, वीरोदय (मासिक प्रपत्र), १० सं० २ (ख) 'ज्ञान' 'विद्या' से फिर इनका संगम हुप्रा ।
-प्रभुदयाल जैन, वीरोदय (मासिक प्रपत्र), प० सं० ३ २. (क) वही। (ख) 'ज्ञानसिंधु' हुए आज दीक्षा गुरु,
प्रभु जीवन नया होगा इनका शुरु।।
(ग) 'गुरु' 'ज्ञान' सुं दीक्षा लेकर बरण जासी धर्म दिवाकर,
चारित्र सजा सिणंगार, मजी शिवमार्ग बणायों जी ।।
__ -मोतीलाल पंवार, वीरोदय (मासिक प्रपत्र), प० सं० ३ . ३. श्री स्वरूपानन्द जी, बाहुबलीसन्देश, पृ० सं०.३ ४. वही।
पृ० सं० ४ (ब) दिगम्बर जैन समाज व्यावर, स्मारिका, प० सं० १४ ६. (क) वही,
प० सं० ८६ (ख) वही,
पु० सं० १४