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महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन
झुल्मक बनने के बाद भूरामलशास्त्री जी ऐलक' अवस्था में भी कुछ समय रहे । ब्रह्मचारी से ऐलक बनने तक पं० भूरामल शास्त्री १०८ श्री वीरसागर जी महाराज के संघ में रहते हुए ही त्यागी पुरुषों को धार्मिक और शास्त्रीय प्रत्य
पाते थे।
ब्रह्मचारी मूरामल से मुनि श्रीमानसागर
विक्रम संवत् २०१६ (सन् १९५६ ई.) में श्री भूरामल जी ने जयपुर में प्राचार्य श्री शिवसागर जी महाराज से दिगम्बर मुनि-दीक्षा ग्रहण की; पोर समस्त बाह्य परिग्रह का परित्याग कर दिया। इस अवसर पर उनका नाम ज्ञानसागर रखा गया। साथ ही उनको संघ का उपाध्याय भी बना दिया गया । अपने इस उपाध्याय पद का सदुपयोग उन्होंने साधु-पुरुष एवं स्त्रियों को पढ़ाने में किया।
१. 'ग्यारहवीं प्रतिमा धारण करने वाले जो श्रावक केवल लंगोटी ही पारण
करते हैं, अन्य वस्त्र नहीं, उनको ऐलक कहा जाता है।' -पं० प्रमतलाल जैन शास्त्री, साहित्यदर्शनाचार्य, जैन-विभागाध्यक्ष, सम्पूर्णानन्द संस्कृत-विश्वविद्यालय, वाराणसी द्वारा प्रेषित १० फरवरी सन् १९७७ ई० के पत्र में से। (क) श्री इन्द्रप्रभाकर जैन, वीरोदय (मासिक प्रपत्र), पृ. सं० १ (स) गॅ० ५० लालबहादुर शास्त्री जैन गजट (साप्ताहिक), पृ० सं० १ () 'गृह तज सूरि वीरसिंधु संघ,
साधुवर्ग अध्ययन करा।। झुल्मक ऐलक क्रम से बनकर, मुनि बनने का भाव भरा ॥५॥
-प्रभुदयाल जैन, बाहुबलीसन्देश, पृ० सं० १५ ३. 'यो हताशः प्रशान्ताशस्तमावाम्बरमूचिरे।
यः सर्व-सङ्ग-सन्त्यक्तः स नग्नः परिकीर्तितः ॥ रेषणात्लेशराशीनामुषिमाहुर्मनीषिणः। मान्यत्वादात्मविद्यानां महविः कीर्यते मुनिः ॥
-40 हीरालाल सिसान्त शास्त्री, जैन धर्मामृत, ५५३७-३८ ४. (क) श्री इन्द्रप्रभाकर जैन, वीरोदय (मासिक प्रपत्र), पृ०.सं. १ (ब) "पूरण परिग्रह त्यागने की, भावना परगट भई । प्राचार्य शिवसागर मुनि, डिंग बाय मुनि दीक्षा मई।"
-श्रीलाल जैन वैच, मुनिपूजन, पृ० सं०७ (१) पं० हीरालाल सिदान्तशास्त्री, बाहुबलीसन्देश, पृ० सं० १४