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________________ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन इनमें से संस्कृत साहित्य-ग्रन्थ, संस्कृत-प्रेमियों और हिन्दी ग्रन्थ जन-साधारण को जैन दर्शन की विशेषतामों से परिचित कराने के लिए लिखे गए हैं। ये अन्य न केवल जैन साहित्य एवं दर्शन को, अपितु सम्पूर्ण, संस्कृत-वाङ्मय की अमूल्य निधि हैं। . इस प्रकार अनेक ग्रन्थों के निर्माण एवं पठन-पाठन में पं० भूरामलशास्त्री जी ने अपनी युवावस्था व्यतीत की। जब उनको प्रायु ५१ वर्ष की हुई, तब विक्रम संवत् २००४ (सन् १९४७ ई.) में मात्म-कल्याण की प्रबल भावना से बालब्रह्मचारी होते हुए भी प्राचार्य वीरसागर जी महाराज की प्राज्ञा से उन्होंने मजमेर नगर में ब्रह्मचर्य प्रतिमा धारण कर ली।' वि० संवत् २००६ (सन् १९४६ ई.) में पाषाढ़ शुक्ला अष्टमी को उन्होंने पूर्वजों का घर पूर्णतया छोड़ दिया और अजमेर मगर, केसरगंज में सप्तमप्रतिमा अंगीकृत कर ली। इस समय उनकी प्रायु ५३ वर्ष की हो चुकी थी। विक्रम संवत् २००७ (सन् १९५० ई०) में ब्रह्मचारी पं० भूरामल शास्त्री स्व. प्राचार्य सूर्यसागर जी के पास दिल्ली गए, वहाँ वह पहाड़ी धीरज की धर्मशाला में रुके। यहीं पर दिगम्बर जैन सरस्वती भवन के अध्यक्ष पं. हीरालाल जी सिद्धान्तशास्त्री से इनकी भेंट हुई। सिद्धान्तशास्त्री जी के हृदय पर ब्रह्मचारी जी के व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व का पमिट प्रभाव पड़ा।४ पं० भूरामलशास्त्री इस समय भी ज्ञान की साधना में लगे रहते थे। उन्होंने १. (क) पं० हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री, दयोदय चम्पू, प्रस्तावनाभाग, पृ० सं० (ख) श्री इन्द्रप्रभाकर जैन, वीरोदय (मासिक प्रपत्र), पृ० सं० १ । (ग) पं. चम्पालाल जैन, बाहुवलीसन्देश में से । (घ) इससे अधिक भयभीत हो, पुनि घोर निद्रा से जगे। श्री वीरसागर पूज्य के निज सौंध को ढूंढने लगे ॥ पुनि जाय श्री प्राचार्य के, चरणन नवायो माय को। अपने हृदय के भाव सब, दर्शाये मुनि श्री नाथ को । उन समझ असली रूप को, ब्रह्मचर्य की मात्रा क्यो । होकर मगन गुरु पग परस, मन दृढ़प्रतिज्ञा कर लयी। -श्रीलाल जैन वैद्य, हिसार, मुनिपूजन, पृ० स० ६ २. ब्रह्मचर्य प्रतिमा ही सप्तम प्रतिमा है। -पं० हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री, जैनधर्मामत, ४१३५ ३. गौरीलाम जैन, बाहुवलीसन्देश, पृ० सं० ३३ । ४. पं. हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री, बाहुबलीसन्देश, पृ० स० १३
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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