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महाकवि मानतामर के कान-एक अध्ययन इसी बीच श्री भूरामल शास्त्री के बड़े भाई छगनलास भी गया से लौटकर घर मा गए । तब दोनों भाइयों ने मिलकर दुकान द्वारा प्राजीविकोपार्जन किया मोर छोटे भाइयों की शिक्षा-दीक्षा एवं देख-रेख का कार्य भी किया। .
पं. भूरामल शास्त्री की युवावस्था, विद्वत्ता, गृहसंचालनपटुता, माजीविको. पार्जन की योग्यता मादि गुणों से भनेक लोग प्रभावित हुए। फलस्वरूप इनके विवाह हेतु प्रस्ताव भेजे जाने लगे। माइयों एवं सम्बन्धियों ने भी उनसे विवाह कर मेने का भाग्रह किया । परन्तु जन-साहित्य के निर्माण और उसके प्रचार में विवाह को एक बहुत बड़ी बाषा मानकर उन्होंने अपने शिक्षाकाल (१८ वर्ष की आयु) में ही भाजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा कर ली थी। प्रतः अपने सम्बन्धियों के भाग्रह को ठुकरा दिया और अपने भाजीवन ब्रह्मचारी रहने की इन्चा भी प्रकट कर दी।
ब्रह्मचर्य-व्रत का अंगीकार करने के बाद मात्म-कल्याण एवं जैन-काव्य-निर्माण के इन्क ५० भरामल शास्त्री दुकान के काम की भोर से भी उदासीन हो गए। फलस्वरूप वह दुकान का कार्य अपने बड़े भाई और छोटे भाइयों को पूर्णरूपेण सौंपकर ज्ञानाराषन में ही लीन हो गए। उन्होंने एक समय शुद्ध सात्त्विक भोजन, १. पं० होरालाल सिद्धान्तशास्त्री, दयोदयचम्पू, प्रस्तावनामाग, पृ० सं० त । २. (क) पं० हीरालाल सिदान्तशास्त्री, दयोदयचम्पू, प्रस्तावनाभाग, पृ० सं०
(स) डा. विद्याधर जोहरापुरकर एवं डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल, वीर
शासन के प्रभावक प्राचार्य, १० सं० २७० । (ग) पं० चम्पालाल जैन, बाहुवलीसन्देश, प्रद्वितीय श्रमण, पृ. स. ३७ (ब) मूलचन्द्र चौधरी, ऋषभचरित, मुनि श्री ज्ञानसागर का परिचय । (क) शान्तिस्वरूप जैन, मुनिपूजन में से। (च) धर्मचन्द मोदी, स्मारिका, प्राचार्य ज्ञानसागर जी महाराज, पृ० सं०
१२। (छ) में पं० लालबहादुर शास्त्री, जैनगजट (साप्ताहिक), पृ० सं० १ (ज) मुनिसंघव्यवस्थासमिति, नसीराबाद, (राज.), बीज्ञानसागर जी
__ महाराज का संक्षिप्त जीवन परिचय, पृ० स०२। ३. (क) 4. हीरालाल सिदान्तशास्त्री, दयोदयबम्पू, प्रस्तावनामाग, पृ.सं.
(ब) विद्याधर जोहरापुरकर एवं डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल, वीर
शासन के प्रभाव प्राचार्य, पृ० सं० २७०। (ब) गॅ. पं० लासबहादुर शास्त्री, जैनगजट (साप्ताहिक), प. सं.। (ब) मुनिसंघव्यवस्थासमिति, नसीराबार (राज.), श्री ज्ञानसागर जी
महाराज का संक्षिप्त जीवन परिचय, पृ.सं. २।