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________________ महाकवि ज्ञानसागर का जीवन वृत्तान्त से जन ग्रन्थों की शिक्षा प्राप्त की।' इस समय पण्डित उमराव सिंह जी महा. विद्यालय में धर्मशास्त्र के अध्यापक थे। भूरामल को जन-ग्रन्थों के अध्ययन की प्रेरणा इन्हीं से मिली । बाद में पं० उमरावसिंह ने ब्रह्मचर्य-प्रतिमा अंगीकृत कर ली और ब्रह्मचारी ज्ञानानन्द जी के नाम से विख्यात हुए। यही कारण है कि अपने काग्यों के मंगलाचरण में गुरुवन्दना के समय भूरामल इन्हीं का नाम उल्लिखित करते रहे। भूरामल अपने अध्ययन-काल में भी स्वावलम्बन पर ही विश्वास करते थे। उन दिनों में भी उन्होंने किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया। वह अपने परिश्रम से उपाजित धन से ही विद्यालय के भोजनालय में भोजन करते थे।५ कार्य क्षेत्र शास्त्री की उपाधि प्राप्त करके श्री भरामल जी अपने ग्राम (राणोली) नोट पाए । अब उनके सामने कार्य-क्षेत्र को चुनने की समस्या थी। एक ओर तो अध्ययन अध्यापन के प्रति रुचि, और दूसरी मोर परिवार की शोचनीय परिस्थिति । पर उन्होंने दोनों ही स्थितियों को प्रादर्शपूर्ण रीति से सम्हाला । विद्यालयों में वैतनिक सेवा में रत अध्यापकों का अनुकरण करते हुए, गांव में रहकर स्थानीय जैन-बालकों को निःशुल्क शिक्षा देने लगे; और साथ ही परिवार की आर्थिक दशा सुधारने के लिए दुकानदारी भी करते रहे। इन दोनों कार्यों के अतिरिक्त उनका स्वाध्याय तो निरन्तर चलता ही रहता था। १. बही, २. मलवीजं मलयोनि गलन्मलं पूतगन्धि बीभत्सम् ।। पश्यन्नङ्गमनङ्गाद्विरमति यो ब्रह्मचारी सः ॥ -पं० हीरालाल सिदान्तशास्त्री, जैनधर्मामृत, ४।१३५ ३. पं० हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री, दयोदयचम्पू, प्रस्तावनाभाग, पृ० सं० ण । ४. ज्ञानेन चानन्दमुपाश्रयन्तश्चरन्ति ये ब्रह्मपथे सजन्तः ।। तेषां गुरूणां सदनुग्रहोऽपि कवित्वसक्ती मम विघ्नलोपी॥ . -वीरोदय महाकाव्य, १०६ ५. पं. हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री, बाहुबलीसन्देश, प० सं० १४ .. ६. (क) पं० हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री, दयोदयचम्पू, प्रस्तावनाभाग, पृ० सं० त। (ख) ० विद्याधर जोहरापुरकर एवं ० कस्तूरचन्द्र कासलीवाल, बीर शासन के प्रभावक प्राचार्य, पृ० सं० २७० । (ग) प्रकाशचन्द्र जैन, वोरोदय (महाकाव्य) के प्रकाशकीय में से ।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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