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________________ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन शास्त्रि-परीक्षा उत्तीर्ण की। भूरामल परीक्षा पास करने को ज्ञान की सच्ची कसोटी नहीं मानते थे । उनके अनुसार ग्रन्थ को आद्योपान्त समझना प्रावश्यक था। अपनी इस मान्यता के कारण सब कार्यों से विरक्त होकर वह अध्ययन में जुट गए। रात-दिन, एक-एक करके वह ग्रन्थों को पढ़ते और क.ण्ठस्थ करते थे। इस प्रकार इन्होंने वाराणसी में रहते हुए थोड़े ही समय में शास्त्रि परीक्षा के सभी ग्रन्थों को अच्छी प्रकार से पढ़ लिया था। भूरामल के शिक्षा-ग्रहण करते समय, जन प्रणीत संस्कृत व्याकरण और साहित्य के ग्रन्थ प्रकास में नहीं पाए थे, प्रतः उनका परीक्षामों में प्रभाव पाया जाता था । फलस्वरूप सभी छात्रों को जनेतर ग्रन्थों को पढ़कर ही परीक्षा उत्तीर्ण करनी पड़ती थी। जैन-ग्रन्थों का ऐसा प्रभाव भूरामल को अच्छा नहीं लगा। उनकी प्रबल इच्छा हुई कि अप्रकाशित जैन-प्रन्यों को प्रकाश में लाया जाय । भरामल के अतिरिक्त अन्य व्यक्ति भी इस मोर प्रयत्नशील हुए। फलस्वरूप भूरामल और उन लोगों ने मिलकर न्याय एवं व्याकरण के कुछ प्रकाशित जन-ग्रन्थों को कागी विश्वविद्यालय एवं कलकत्ता परीक्षालय के संस्कृत पाठयक्रम में निर्धारित कराने का सफल प्रयास किया। साथ ही भरामल ने यह भी हद निश्चय कर लिया कि परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद मैं जन-ग्रन्थों का प्रकाशन करवाने का प्रयास करूंगा। उन्होंने वाराणसी में रहते हुए जैनाचार्य प्रणीत ही न्याय, व्याकरण, साहित्यादि ग्रन्थों का अध्ययन किया, जनेतराचार्य प्रणीत ग्रन्थों का नहीं। उस समय की एक वात और चिन्तनीय थी, और वह यह कि वाराणसी के संस्कृत-प्रध्यापक छात्रों की इच्छा होने पर भी उन्हें जैनाचार्यप्रणीत ग्रन्थों की शिक्षा नहीं देते थे। भूरामल ने अपने दृढ़-निश्चय के अनुसार येन-केन-प्रकारेण अध्यापकों (छ) श्री इन्द्र प्रभाकर जैन, वीरोदय (मासिक गजट), पृ० सं० २। (ज) डॉ. विद्याधर जोहरापुरकर एवं डा० कस्तूरचन्द्र कासलीवाल, वीर शासन के प्रभावक प्राचार्य, संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान-प्राचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज, पृ० सं० २७० । १. (क) डा० पं० लालबहादुर शास्त्री, जैन गजट, पृ० सं० १। (ख) मुनिसंघव्यवस्थासमिति, नसीराबाद (राज.), प्राचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज का संक्षिप्त जीवन परिचय, प० सं० २ । २. पं० हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री, दयोदयचम्पू, प्रस्तावनाभाग, पृ० ढ। . ३. पं० हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री, दयोदयचम्पू प्रस्तावनाभाग, पृ० सं० रण।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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