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महाकवि ज्ञानसागर का जीवन वृतान्त
फलस्वरूप भूरामल के अध्ययन में बाधा उपस्थित हो गई ।' भूरामल के सबसे छोटे भाई देवीदत्त का जन्म पिता की मृत्यु के बाद हुमा । २
परिवार का भरण-पोषण करने के लिए भूरामल के बड़े भाई धनमाज को अपनी इस बाल्यावस्था में ही घर से निकलना पड़ा। प्राजीविका की बोच करते हुए वह गया पहुंचे। वहां उन्होंने एक जैन दुकानदार की दुकान में नौकरी कर ली । शिक्षा प्राप्ति के साधन के प्रभाव में भूरामल भी अपने बड़े भाई के पास गया चले गए और वह भी किसी जैनी सेठ की दुकान में काम खोजने लगे । 3
इस प्रकार जीवन-यापन करते हुए एक वर्ष बीत गया। इसी बीच स्यादवाद महाविद्यालय, वाराणसी के छात्र किसी समारोह में भाग लेने के लिए गया प्राये । उनको देखकर भूरामल के भी मन में वाराणसी में विद्या ग्रहण करने की बलवती इच्छा उत्पन्न हो गई। उन्होंने प्रपने भाई से इस सम्बन्ध में निवेदन किया । यद्यपि घर की परिस्थिति को देखकर छगनलाल, भूरामल को वाराणसी नहीं भेजना चाहते थे, किन्तु अध्ययन के लिए भूरामल की डढ़ता भौर तीव्र लालसा देखकर उन्हें स्वीकृति देनी पड़ी। इस प्रकार १५ वर्ष की आयु में भूरामल विद्या ग्रहण करने वाराणसी चले गये । ४
वाराणसी में स्याद्वाद महाविद्यालय से उन्होंने संस्कृत-साहित्य एवं जनदर्शन की उच्च शिक्षा प्राप्त की। इसी बीच क्वोन्स कालेज, काशी से उन्होंने १.. (क) पं० हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री, दयोदयचम्पू, प्रस्तावना भाग पृ० सं०
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(ख) जनमित्र, साप्ताहिक पत्र, मुनि श्री ज्ञानसागर जी का संक्षिप्त परिचय, वीर संवत् २४६२, वैशाख सुदी ८ ( २८-४-१९६६) पृ० सं० २५३ (क) बही ।
(ख) वही ।
३ (क) वही ।
वही ।
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४.
बही ।
यही ।
प्रकाशचन्द्र जैन, 'बीरोदय' (महाकाव्य) के प्रकाशकीय में से । (घ) पं० चम्पालाल जैन, बाहुबलीसम्देश में से ।
(ङ) डॉ० पं० सालबहादुर शास्त्री, चैन गजट, पृ० सं० १ ।
(च) मुनिसंघव्यवस्थासमिति, नसीराबाद (राज०), प्राचार्य श्री शानसापर जी महाराज का संक्षिप्त जीवन परिचय, पू० सं० २ ।