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________________ ( xvii) लिखने भोर कहने में किञ्चिन्मात्र भी अत्युक्ति नहीं है कि मुझे अपना शोध-प्रबन्ध पूरा करने में उनके परोपकार, प्राशीर्वाद, दीर्घकालीन अध्यापनानुभव पौर शानप्राचुर्य से सतत सहायता एवं दिशादृष्टि मिलती रही है। प्रतः मैं हृदय से उनकी प्रामारी एवं कृतज्ञ हूँ। पं० अमृतलाल जैन (अध्यक्ष, जनदर्शन-बिभाग, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी) के प्रति अपना प्राभार प्रकट करती हूँ। उन्होंने मुझे समयसमय पर शोष-प्रबन्ध हेतु सुझाव दिये हैं और जैन-दर्शन-सम्बन्धी ग्रन्थों के विषय में जानकारी भी दी है। पं० हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री (अध्यक्ष, दिगम्बर जैन सरस्वती भवन, म्यावर) ने कविवर ज्ञानसागर की संस्कृत-काव्य कृतियों का सम्पादन किया है। साथ ही उनके द्वारा सम्पादित जन-धर्म एवं दर्शन के ग्रन्थ भी मेरे लिए परमोपयोगी सिद्ध हुए हैं। सकलकीति विरचित सुदर्शनचरित की पाण्डुलिपि की प्रतिलिपि भी मुझे उन्हीं को महती कृपा से प्राप्त हुई है। प्रतः उनके प्रति भी मैं हृदय से भाभारी हूँ। .. श्री चेतनप्रसादपाटनी (प्रवक्ता, हिन्दी विभाग, जोधपुर विश्वविद्यालय) के प्रति भी में अपना प्राभार प्रकट करती हैं, क्योंकि कविवर के शिष्य प्राचार्य विद्यासागर जी से उन्होंने मेरे विषय में पत्र-व्यवहार किया और शोधकार्य हेतु 'पाराधनाफयाकोश' नामक ग्रन्थ भी मुझे दिया। ___ महाकवि ज्ञानसागर के प्रमुख प्राचार्य श्री विद्यासागर जी के प्रति भी मैं कृतज्ञ हूँ। मेरे पत्रव्यवहार करने पर उन्होंने कुछ विद्वान् सज्जनों को मेरी सहायता करने के लिए प्रेरित किया। उनमें से एक तो श्री निहालचन्द्र जी जैन (प्रधानाध्यापक, टीकमचन्द्र जैन इण्टर कालेज, अजमेर) हैं। उन्होंने मेरी प्रार्थना करने पर उपलब्ध कवि के जीवन से सम्बन्धित कुछ सामग्रो भेजकर मुझे अनुगृहीत किया। दूसरे हैं श्रीजगन्मोहनशास्त्री (अवकाशप्राप्त अध्यापक, दमोह), जिन्होंने प्राचार्य श्री विद्यासागर जी के प्रादेश से श्रीज्ञानसागर द्वारा विरचित कुछ सामग्री तथा कवि की जीवनी से सम्बन्धित कुछ पत्र-पत्रिकाएँ भिजवाई। मैं उन दोनों की भी हृदय से प्राभारी हूँ। ___ मुनिश्रीज्ञानसागर जैन ग्रन्यमाला की पुस्तकों को विक्रय की सुविधा प्रदान करने वाले श्री गणेशीलाल रतनलाल कटारिया कपड़ा बाजार, ब्यावर की भी प्रामारी हैं, क्योंकि उनकी कृपा से मुझे कविवर ज्ञानसागर का काफी साहित्य प्राप्त हो सका है। राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, शास्त्री भवन, नई दिल्ली से मुझे शोषकार्य हेतु छात्रवृत्ति मिली, जिससे मेरी शोधकार्य सम्बन्धी आर्थिक कठिनाई काफी मात्रा में
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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