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________________ ( xvi ) विवेत्य एवं समयसार-सभी साहित्यिक एवं दार्शनिक मौलिक कृतियों का तथा दार्शनिक टीका-कृतियों का प्रमित परिचय दिया गया है। तृतीय परिशिष्ट में सूक्तियों की महत्ता पर विचार करने के बाद महाकवि संस्कृत काव्य-प्रन्पों में प्रयुक्त सूक्तियों की सारिणी प्रस्तुत की गई है, जो कवि केवाग्वदग्भ्य का स्पष्ट परिचय देती है। चतुर्व परिशिष्ट में विभिन्न विद्वानों को महाकवि ज्ञानसागर के विषय में प्रशंसात्मक उक्तियां एवं स्तुतियां प्रस्तुत की गई है, जो उनकी मूतिमती लोकप्रियता की साक्षिणी हैं। पञ्चम परिशिष्ट में अपने शोष प्रबन्ध के लेसन में सहायक प्रमुख-प्रमुख मन्त्रों की सूची दी गई है। ___ महाकवि ज्ञानसागर के व्यक्तित्व एवं कत्तुं त्व पर प्राधारित इस शोष प्रबन्ध को प्रायोपान्त पढ़ने से यह ज्ञात हो जायगा कि वह न केवल संस्कृत भाषा केपितु हिन्दी भाषा के भी साहित्यकार थे। उनके व्यक्तित्व में साहित्यिक एवं दार्शनिक की समान छवि दृष्टिगोचर होती है। इस दोहरी भूमिका को कवि ने न केवल अपने कत्तत्व में प्रपितु अपने जीवन में भी बड़ी सफलतापूर्वक निभाया है। उनका 'जयोदय' नामक महाकाव्य ही उन्हें सफल महाकवि सिद्ध करने में समय है, फिर अन्य तीन महाकाय बोर एक चम्पूकाव्य की रचनाएं तो उनके महाकवित्व में सन्देह का कोई स्थान ही नहीं रहने देतीं। सहृदय सामाजिकों एवं समालोचकों से मेरा निवेदन है कि वे धर्मनिरपेक्ष होकर ही ज्ञानसागर एवं उनकी काम्य-सम्पदा को समझने का यत्न करें। मैंने भी एक जैन कवि के काव्य की समालोचना करने में धर्म एवं जाति के बन्धनों की चिन्ता नहीं की है। काव्यप्रेमियों को तो कवि के काम्यों की काव्यात्मकता से ही प्रयोजन होना चाहिए, उसके वर्म एवं जाति से नहीं। पानारप्रदर्शन . प्रस्तुत शोष-प्रबन्ध निर्देशन का भार लेकर मेरे परमावरणीय गुरुदेव 5. हरिनारायण बी दीक्षित (रीटर एवं अध्यक्ष, संसत विभाग, कुमायं विश्वविद्यालय, नैनीताल) ने मेरे प्रति महान् उपकार किया है। प्राचार्य दोमित जी नाममात्र के ही निर्देशक नहीं रहे, क्योंकि उनके क्रियात्मक निर्देशन के ही फलस्वल्प मेरा यह शोष-प्रबन्न प्रस्तुत हो सका है। उन्होंने केवल शान्दिक प्रेरणा नहीं दी, अपितु श्रीमानसागर के काव्य भी स्वयं ही मंगांकर मुझे पढ़ने को लि। मेरे शोष-विषय से सम्बन्धित अन्य अनेक पुस्तकें पपने निजी पुस्तकालय बारतापूर्वक देने में तो उन्होंने कभी मानसिक सोच भी नहीं किया। उन्हाने निरन्तर शोष-विषय सम्बन्धी प्रपने विद्वत्तापूर्ण सुझाव ही मुझे नहीं दिये, बपितु कार्य के प्रति मेरे प्रमाद को भी दूर करने का सफल प्रयास किया। यह
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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