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सप्तम अध्याय में महाकवि के संस्कृत काव्य-ग्रन्थों की भावपक्ष के अनुसार पालोचना की गई है । सर्वप्रथम काव्य में भावण का महत्त्व एवं उसके भेदों की चर्चा की गई है । तत्पश्चात् रस, रसाभास, भाव, भावाभास, भावशान्ति, भावोदय, भावसन्धि मोर भावशबलता के मम्मट एवं विश्वनाथ सम्मत लक्षण देकर कविवर के संस्कृत-काव्यों में इनका ममन्वेषण किया गया है। इसी सन्दर्भ में कवि के संस्कृत काव्य-ग्रन्यों में वस्तु-ध्वनि पोर गुणीभूतव्यङ्ग्य को भी चर्चा की गई है । अन्त में भावपक्ष की दृष्टि से ज्ञानसागर को सफल महाकवि सिद्ध किया गया है।
प्रष्टम अध्याय में कवि के संस्कृत-काव्य-ग्रन्थों के कलापक्ष पर विचार किया गया है । कला का स्वरूप, उसका काव्य में महत्त्व एवं भेदों पर विचार करने के बाद अलङ्कार, छन्द, गीत, गुण, भाषा, शैली, वाग्वदग्ध्य, संवाद, देशकाल इत्यादि का परिचय दिया गया है। और फिर ज्ञानसागर के काम्यों में प्राप्त इन सभी की चरितार्थता सिद्ध की गई है । अन्त में इन सभी की समालोचना करके कविवर को एक सफल कलाकार के रूप में सिद्ध किया गया है।
नवम अध्याय में कवि के जीवन-दर्शन की चर्चा की गई है, जिससे ज्ञात हो जाता है कि कवि के समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था, संस्कृति, धर्म एवं दर्शन के सम्बन्ध में क्या विचार थे ? उनके काव्यों में वरिणत जैनधर्म की चर्चा से यह स्पष्ट कर दिया गया है कि न केवल संस्कारवश अपितु उपयोगिता की दृष्टि से कवि ने जैन धर्म को सर्वश्रेष्ठ रूप में माना है।
दशम अध्याय, जो उपसंहारात्मक है, में कवि एवं उनके काव्यों की संस्कृत-साहित्यकारों एवं संस्कृत-काव्यों में कोटि निर्धारित की गई है। कवि के अन्त्यानुप्रास एवं गीतों के आधार पर प्राचीन एवं प्राधुनिक कवियों के बीच उनकी मौलिकता सिद्ध को गई है। तदनन्तर उनके काव्यों में साहित्य के माध्यम से दर्शन को प्रस्तुत करने की कलाकुशलता को स्वीकृत करते हुए उन्हें एक श्रेष्ठ कवि और उनकी कृतियों को श्रेष्ठ काव्यकृतियों के रूप में सिद्ध करके शोध-प्रबन्ध को समाप्त कर दिया गया है ।
इस प्रकार यहाँ तक अपने शोध-प्रबन्ध को सम्पूर्णता देकर अन्त में पांच परिशिष्ट भी दिये गये हैं, जिनका सारांश इस प्रकार है
प्रथम परिशिष्ट में संस्कृत भाषा में ज्ञानसागर द्वारा रचित दो दार्शनिक कृतियों सम्यक्त्वसारशतक (मोलिक) एवं प्रवचनसार (मनुवाद कृति) का परिचय दिया गया है।
द्वितीय परिशिष्ट में कवि को हिन्दी भाषा में रचित ऋषभावतार, धन्य. कुमार का वरित, पवित्रमानव जीवन, सरल जैन विवाह विधि, कर्तव्यपथप्रदर्शन, चित्त विवेचन, स्वामी कुन्द कुन्द और सनातन जैन धर्म, तत्त्वार्थसूत्रटीका,