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________________ ( xiv ) जिससे इन संस्कृत काव्यों की समीक्षा होने के पूर्व ही पाठक इन काव्यों की सरस कथावस्तु से पूर्णतया परिचित हो सकता है। तृतीय अध्याय में कवि के उपर्युक्त संस्कृत-ग्रन्थों के स्रोतों की विस्तृत चर्चा की गई है । 'महापुराण', 'बृहत्कथाकोश' एवं मनि नयनन्दी के 'सुदंसरणचरिउ' में से कवि के काव्यों से सम्बन्धित कथानों का सारांश प्रस्तुत करने के बाद उक्त कथाओं का मनिश्री के काव्यों से अन्तर प्रस्तुत किया गया है । अन्त में कवि की मौलिकता की स्थापना की गई है। चतुर्थ अध्याय में बताया गया है कि ज्ञानसागर का कोन काव्य किस विधा में पाता है ? इसलिए इस अध्याय में सर्वप्रथम काव्य एवं उसके प्रमुख भेदों पर प्रासङ्गिक तथा संक्षिप्त चर्चा की गई है। काव्यशास्त्रीय इस समालोचना में प्राचार्य दण्डो तथा प्राचार्य विश्वनाथ के भ्राधार पर महाकाव्य को विशेषताएँ बताकर जयोदय, वीरोदय, सुदर्शनोदय और श्रीसमुद्रदत्तचरित्र को महाकाव्य की कोटि में सिद्ध किया गया है। तत्पश्चात चम्पूकाव्य की विशेषताएं बताकर कवि के दयोदयचम्पू में उन्हें चरितार्थ किया गया है। मुनिमनोरञ्जनशतक' को मुक्तक काव्य सिद्ध किया गया है। तत्पश्चात् संस्कृत भाषा में रचित कविवर के प्रवचनसार' एवं 'सम्यक्त्वमारशतक' की काव्यशास्त्रीय मालोचना को- उनके दर्शन ग्रन्थ होने के कारण- अनावश्यकता की चर्चा की गई है। पञ्चम अध्याय में 'पात्र' शब्द की परिभाषा और उमका काव्य म महत्त्व बताया गया है । ताम्चात् कवि के काव्यों में उल्लेखनीय पात्रों का प्रत्येक काव्य के अनुसार अलग-अलग एवं समवेत वर्गीकरण प्रस्तुत किया गया है, फिर कुछ प्रमुख पात्रों को चारित्रिक विशेषतः प्रों पर प्रकाश डाला गया है । अन्त में कविवर के पात्रों की सामाजिक उपयोगिता सिद्ध करने के बाद मागंश में यह बता दिया गया है कि ज्ञानसागर ने सभी प्रकार के पात्रों को प्रस्तुत करने में प्रशंसनीय सफलताप्राप्त की है। षष्ठ अध्याय में सर्वप्रथम पदार्थ-वर्णन पोर काव्य में उसके महत्त्व पर चर्चा की गई है । तत्पश्चात् प्राकृतिक पदार्थ का परिचय देकर कविवर और उनका प्रकृति वर्णन प्रस्तुत किया गया है। इस प्रसङ्ग में ऊँचे-ऊंचे पर्वत, समुद्र, वन, नदी, सरोवर, ऋतु, काल इत्यादि का ज्ञानसागर के अनुसार वर्णन उनके प्रकृतिप्रेम का परिचय प्रस्तुत करता है। प्राकृतिक पदार्थों का वर्णन करने के बाद वकृतिक पदार्थों का भी वर्णन प्रस्तुत किया गया है । द्वीप, देश, नगर, ग्राम, मन्दिर इत्यादि के वर्णन कवि के वर्णन कौशल को प्रकट करने में समर्थ सिद्ध हुए हैं । इसके बाद झूला-झूलने, पतगक्रीड़ा, पानगोष्ठी इत्यादि के भी वर्णनों को प्रस्तुत कर दिया गया है।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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