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________________ ७. महाकवि ज्ञानसागर के काम्य-एक अध्ययन गुरु ज्ञान के सागर में हम गोते लगायेगे. लूटेंगे मोती ज्ञान के जग को लुटायेंगे ।। पा जायें इनकी भावना के संग-संग हम, मन का धोकर के मैल हम निमंल बनायेंगे। · लूटेंगे मोती............॥१॥ ऐसी जो पुण्य प्रात्मा से प्रीत करके हम, गुरुवर के पद पे चलके ही जीवन बितायेंगे। लूटेंगे मोती............॥२॥ मिट्टी की देह को मापने कंचन बना लिया, श्रद्धा के फूल चरणों में हम तो चढ़ायेंगे। लूटेंगे मोती............॥३॥ यही है सच्चा मार्ग जिसपे चल दिखा दिया, कुछ पा दिखा दिया, उर ला सन्देश तुम्हारा, जग को भी सुनायेंगे, लूटेंगे मोती..... .......॥४॥ मरना तो है इक दिन हमें, कुछ करके ही मरें, ऐसे अवसर को अब ना हम यहीं गवायेंगे, लूटेंगे मोती.............॥५॥ - श्रीमोतीलाम पंवार, 'बाहुबली सन्देश', पृ. सं० ११ ६. फूल भावना के लेकर के, प्राज गुरु मैं अपण करता। श्रवा से नत मस्तक होकर, ज्ञानसिन्धु को वन्दन करता ॥१॥ तुम थे गौरव जैन धर्म के. करुणा की मूरत साकार। विश्व धर्म ही इसे बताते. सत्य अहिंसा जिस प्राधार ॥२॥ राजस्थान ग्राम राणोली, तबली देवी के थे नन्द । साल चतुर्भुव गोत्र छाबड़ा, किया समुज्ज्वल बनकर चन्द ।।३।। जल में भिन्न कमलवत् रहकर, घर में किया पठन-पाठन । बाल ब्रह्मचारी रह कीना, उदासीन जीवन यापन ॥४॥ गृह तज सूरि वीरसिंधु संघ, साषु वर्ग अध्ययन करा। क्षुल्लक ऐनक क्रम से बनकर, मनि वनने का भाव भरा ॥५॥ संवत् दो हजार सोलह में, जयपुर नगर खानियां मांय । शिवाचार्य से दीक्षा लेकर, ज्ञानसिंधु मुनिराज कहाय ॥६॥ प्रमणशील रह नगरों गावों, मातम हित उपदेश दिया। शामसाधना तपश्चरण कर, मनेकान्त को पुष्ट किया ॥७॥
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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