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________________ महाकवि ज्ञानसागर को सूक्तियां हिन्दी संस्कृत प्राकृत के थे, प्राज गुरु उद्भट विद्वान् । स्विष्ट विषय धार्मिक प्राध्यात्मिक, सरल बता करवाते भान ॥८॥ अनुपम ग्रन्यों की रचनाकर, कोना पाप परम उपकार । भाषा सरल बनाकर कोनी, टीका समयसार तैय्यार || प्रमुख ग्रन्थ में से हैं कतिपय, सहशंनोदय' अरु 'भद्रोदय' । 'वीरोदय' 'विवेक' 'जयोदय'. 'शतकसारसम्यक्त्व' 'दयोदय' ॥१०॥ जैन समाज संघ एकत्रित, पद प्राचार्य नसीराबाद । दो हवार पच्चीस की संवत्, दिया हर्ष से कर जयनाद ॥११॥ कर कल्याण समाज आपने, दीने फिर अनुपम नररत्न । रहे प्रज्वलित ज्ञान ज्योति जो, कर शिक्षा दीक्षा सम्पन्न ॥१२॥ परम शिष्य मुनि विद्यासागर, ऐलक 'सन्मति' मुनि 'विवेक'। क्षुल्लक संभव' 'विनय'रु सुख थे, है 'स्वरूप' लाखों में एक ॥१३॥ नश्वर देह क्षीणता लखकर, कर दीना फिर पद परित्याग । 'मुनि विवा' प्राचार्य बनाकर, व्रत सल्लेखन पप पग माग ॥१४॥ दो हजार मरु तीस की संवत्, मृत्यु को करके माह्वान । कृष्ण ज्येष्ठ प्रमावस के दिन, स्वर्ग लोक को किया प्रयाण ॥१६॥ धन्य-धन्य ऐसे योगीश्वर, बसें सदा ही 'प्रभु' मन धाम । स्वर्ग जाय जो बढ़कर आगे, करेंगे सिदशिला विश्राम ॥१७॥ -श्री प्रभुदयाल जैन, 'बाहुबली सन्देश', ० सं० १५-१६ 8. निग्रंपमपि समन्यं सतञ्चापि विश्रुतम् । ज्ञानसागरनामानमाचावं बिनमाम्यहम् ।।' -पन्नालाल साहित्याचार्य, बाहुबली सन्देश, पृ० सं० १७ १०. "प्रा० शानसागर जी महाराज यथानाम तथा गुण तपस्वी थे । वे प्रथम विद्यान्वेषी समाराधक थे, बाद में निर्ग्रन्थ रूपधारी माचारवान् ।" ---'स्मारिका' (souvenir) में श्री हेमचन्द्र जैन । ११. “परमपूज्य चरित्र चक्रवर्ती श्री १०८ श्री ज्ञानसागर जी महाराज पनुपम ज्ञाननिधि तथा चरित्रनिष्ठ तपस्वी साधुराजये। उनकी शानगरिमा दिव्य थी। अनेक ग्रन्थों के समर्ष रचयिता पुज्य पाचार्य श्री निस्सन्देह ज्ञानसागर थे।' -'बाहुबली संदेश में श्रीमागचन्द सोनी।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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