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महाकवि ज्ञानसागर की सूक्तियाँ
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मनेकों भव्य जीवों को; लगाया सत्य मारग पर । या मागं शान्ति का, वही ये ज्ञानसागर हैं । सहें हिम धूप की बाधा, न हर तूफान वर्षा का । अकम्पन प्रात्मा जिनकी, वही ये ज्ञानसागर है ।। श्रेष्ठ प्रादशं साबु हैं, मचल चारित्र है इनका । भावमार्गानुगामी पो, वही मे ज्ञानसागर हैं । परीक्षा की कसोटी परं, साधुपन को परल करके । सभी ने सर नमाया है, वही ये ज्ञानसागर हैं !!
- श्रीलाल जैन बंध, हिसार ( पंजाब ), मुबि - पूजन मुखपृष्ठ के भीतरो भाग पर ।
धन्य मुनिराज ज्ञानसागर जी, शक्ति नहीं गुणवर्णन की । मैं दुखिया संसारी है, नाव में मायाचारी हूँ ।
बिगड़ी दशा मेरे जीवन की शक्ति नहीं गुणवर्णन की ॥ पंच महाव्रत धारी हो, करो तपस्या भारी हो । ममता नहीं है कुछ तन की, शक्ति नहीं गुरणवर्णन की ।। तुम प्रभु पर हितकारी हो, जग-जन के उपकारी हो । फांसी तोड़ी कर्मन की, शक्ति नहीं गुणवर्णन की ॥
प्रभु तुम दर्श दिखा देना, ज्ञान सुधा बरसा देना ।
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मुझे चाह नहीं है, कुछ मन की शक्ति नहीं गुरणवर्णन की ।। तुम शिव श्रानन्दकारी हो, शिवपुर के अधिकारी हो । शरण लही तुम चरणन की, शक्ति नहीं गुरण-वर्णन की ।। - श्रीलाल जैन, मुनिपूजन, भजन संख्या, पृ० सं०८ मुनीश्वर ज्ञानसागर का लगा दरबार भारी है । तजे हैं मात सुत भाई, तजा है राज वैभव को ॥
त्याग कर वस्त्र प्राभूषरण, दिगम्बर मुद्राधारी है ॥ मुनि || लगाकर प्रचल प्रासन को, धरा है ध्यान प्रातम का । करा है लोंच केसों का, कमण्डल पोछी धारी है ॥ मुनि०|| गमन करें ईर्ष्या समिति से निरल करके प्रभु भूमि को । करें सब जीव की रक्षा दया हृदय में धारी है ॥ मुनि० ॥ धर्म के भूप तुम प्रभु हो, ये सब प्रजा तुम्हारी है । ज्ञान की जगाकर जोती, धर्म की वर्षा करते हैं । मुनि० ॥ यहाँ संयम दान बंटता है, बड़े लाखों भिखारी हैं । धर्म प्रचार होता है, प्रभु की वाणी सुन-सुन के ||
यह जय जयकार होती है, यह सब महिमा तुम्हारो है ॥ मुनि० ॥ - श्रीलालजन, 'मुनिपूजन', भजन संख्या ६, पृ० सं० १२