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________________ महाकवि ज्ञानसागर का जीवन-दर्शन ४२५ ध्यान-- जैन दर्शनाचार्यों ने ध्यान को माभ्यन्तर तप का एक प्रकार बताते हुए उसके चार भेद किये हैं :- मात, रोद्र, धम्यं एवं शुक्ल ।' हमारे कवि का यही मत है। उनके अनुसार प्रात्मा के उपभोग में एकाग्रता का पाना ही ध्यान कहलाता है । ध्यान के मात, रोद्र, धयं पौर शुक्ल ये चार भेट हैं । किङ्कर्तव्यविमढ़ता रूप शोकातुस्ता का नाम मार्त-ध्यान है । हिंसक कार्यों के प्रति प्रवत्ति को रोद्र ध्यान कहते हैं। शरीर मोर मात्मा को भिन्न-भिन्न समझते हुए धार्मिक कार्यों में प्रवृत्ति को ही धर्म्य ध्यान कहते हैं, प्रब जब इसी ध्यान में ध्याता, ध्यान और ध्येय का भेद समाप्त हो जाता है, तो इस (धम्यं ध्यान) को ही शुक्ल ध्यान कहा जाता है। __ जैन-धर्म में ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, प्रायु, नाम, गोत्र एवं अन्तराय-ये पाठ कर्म बताये गए हैं। . . श्रीज्ञानसागर ने भी इन पाठकों को मानते हुए बताया है किशानावरण, दर्शनावरण, अन्तराय और मोहनीय-ये चार 'पातिया' कर्म हैं । प्रात्मा को शान दर्शन एवं शक्ति का उपयोग करने में बाधक पौर भुलावे में डालने वाले कर्मों को जन-दर्शन में 'पातिया' कर्म कहते हैं। 'मघातिया' कर्म सीधे-सीधे प्रात्मा के गुणों को हानि नहीं पहुँचाते। ये क्रमशः प्रात्मा में ऊँच-नीच का भेद, मच्छी-पूरी चीजों से सम्पर्क, शरीर और उसके मङ्गोपाङ्गादि बनाने में सहायक मोर पात्मा को शरीर में रोकने इत्यादि का कार्य करते हैं। प्रतः घातिया कर्म प्रात्मा के मनुजीवि गुणों का पोर अधातिया कर्म प्रतिजीवि गुणों का क्षय करते हैं।' (घ) जैन-धर्मामृत, ८।१-२४ (ङ) नेमिचन्द्र मुनि, द्रव्य-संग्रह, १११२, २०१५, १७-१६, २१ (च) वीरोदय, १६।२४-३८ _ 'स्वाध्यायः शोषनं चैव वयावृत्त्यं तव च । व्युत्सर्गो विनयश्चैव ध्यानमाभ्यन्तरं तपः ॥xxx पातं रौद्रं च धर्म च शुक्लं चेति चतुर्विधम् । ध्यानमुक्तं परं तत्र तपोऽङ्गमुभयं भवेत् ॥' .. -जनधर्मामृत, १२।१४, २२ २. श्रीस मुदत्तचरित्र, ८।३४.४० ३. 'ज्ञान-दर्शनयो रोपी वेद्यं मोहायुषी तया। नामगोत्रान्तरायो च मूलप्रकृतया स्मृताः ॥' -जनधर्मामृत, ११२ ४. श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, का..
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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