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महाकवि ज्ञानसागर के काव्य - एक अध्ययन
पोर प्रचर जीव उन्हें कहते हैं, जिनकी एक से अधिक ज्ञानेन्द्रियां होती हैं, जिनकी केवल स्पर्श न्द्रिय होती हैं । इस प्रकार से तियंञ्च जीवों के भेद चार चर और पांच अचर के भेद से नौ प्रकार होते हैं, जो इस प्रकार हैं-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिनिय मोर पंचेन्द्रिय-ये चार चर हैं, पथ्वीकायिक जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक मोर वनस्पतिकायिक ये पांच एकेन्द्रिय मोर मचर (स्थावर) हैं। अचेतन द्रव्य के भी पांच प्रकार हैं :-पुद्गल, धर्म, अधर्म, माकाश और बाल । पुदगल व्य मूर्त होता है, शेष चार प्रमूतं हैं। जीव और पुद्गल द्रव्यों के गमन का कारण धर्म द्रव्य है । पोर पुद्गल को ठहरने में सहायक कारण अधर्म-द्रव्य है। समस्त द्रव्यों को अपने भीतर अवकावा देने वाला द्रव्य प्राकाश द्रव्य है । द्रव्यों के परिवर्तन में निमित्त कारण को कालदम्य कहते हैं।'
द्रव्यों के भेद प्रभेद से सम्बन्धित रेखाचित्र प्रस्तुत है :--
द्रव्य
प्रचेतन
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प्रचर पुद्गल धर्म अधर्म प्राकाश काल (केवल तिर्यञ्च में)
। एकेन्द्रिय (स्पर्शेन्द्रिय) . देव नारकी मनुष्य तिर्यञ्च दीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय पञ्चेन्द्रिय (स्पर्श,र०) (+प्राण), (चक्षु), (+कर्ण) (कंचुमा) (न) (मक्षिका) (गाय, बैल)
पथ्योकायिक | अग्निका. । वनस्पति
यिक | कायिक
जलकायिक वायुकायिक १. (क) श्रावकाचारसङ्ग्रह (भाग-१), यशस्तिलकबम्पू उपासकाध्ययन,
१०८-११० (ब) श्रावकाचारसग्रह (भाग-१), अमितगति श्रावकाचार, ३१-३३ (ग) बावकाचारसङ्ग्रह (भाग-२), प्रश्नोत्तर श्रावकाचार, २।१६-३०