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(xii ) प्रेस्तावना में केवल सुदर्शनोदय को प्रत्यल्प समीक्षा प्रस्तुत की है। इसी प्रकारे पं. इन्द्रमाल जैन ने बयोदय को प्रस्तावना में, श्री रघुवर दत्त शास्त्री साहित्याचार्य ने वीरोदय की प्रस्तावना में तथा पं० विद्याकुमार सेठी ने श्रीसमुदत्तचरित्र की प्रस्तावना में कवि और उनकी काव्यकला का प्रतीव संक्षिप्त परिचयमात्र दिया है। डॉ. विद्याधर जोहरापुरकर एवं डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल द्वारा रचित 'वोरशासन के प्रभावक प्राचार्य' नामक पुस्तक के अन्त में भी श्रीज्ञानसागर के व्यक्तित्व कत्तत्व के विषय में थोड़ा सा लिखा हुआ प्राप्त होता है । पं० चम्पालाल जन द्वारा सम्पादित 'बाहुबली सन्देश' नामक मासिक प्रपत्र में भी श्रीमानसागर के समाधिमरण के अवसर पर विभिन्न विद्वानों में प्रतीव संक्षिप्त शोक लेख मलित हैं। इसके अतिरिक्त कुछ न पत्र-पत्रिकामों में भी कवि के विषय में पोड़ी सी जानकारी मिल जाती है।
श्रीज्ञानसागर तथा उनको संस्कृत-साहित्य-सम्पदा के विषय में यत्र-तत्र बिखरी हुई पतीव संक्षिप्त उपर्यक्त समस्त सामग्री जैन विद्वानों ने ही दी है। यह सामग्री है भी इतनी कम कि इससे कवि के व्यक्तित्व एवं कत्तत्व पर सन्तोषजनक प्रकाश नहों पड़ सकता । फिर इस सामग्री में ज्ञानसागर एवं उनकी रचनामों का संक्षिप्त परिचय तो मिल जाता है, लेकिन उनकी रचनाएं कवित्व की दृष्टि से किस कोटि में माती हैं, उनका साहित्यिक सौन्दर्य क्या कसा है ? प्रर्थात् उनकी रवनामों का भावपक्ष एवं कलापक्ष कैसा है ? उनसे मानव समाज को क्या शिक्षा प्राप्त हो सकती है पादि-मादि अनेक समीक्षापरक समस्यामों का जिन पर प्रस्तुत शोष-प्रबन्ध में पूर्ण प्रकाश डाला गया है, कोई भी समाधान नहीं मिलता है।
प्रस्तुत कोषकार्य की प्रेरणा
संकृत विषय से एम० ए० मोर साहित्याचार्य करने के बाद मुझे पी-एच. ० उपाधि हेतु शोषकार्य करने की इच्छा हुई। मेरी उस हार्दिक इच्छा को बानकर हमारे परमादरणीय अध्यापक डॉ० हरिनारायण जी दीक्षित (रोग्र एवं अध्यक्ष, संस्कृत विभाष, कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल) ने मुझे श्रीज्ञान
पावर विरचित 'वीरोदय' नामक महाकाव्य गम्भीरतापूर्वक स्वाध्याय करने का . अपना सत्सरामर्श देते हुए दिया । मैंने इसे पढ़ा तो इसकी प.सं. ४८० पर तवा
पावरक पृष्ठ पर पांच अन्य रचनामों का भी उल्लेख मिला। मेरी इच्छा इन रचनामों को पढ़ने की हुई। अपने प्राध्यापक डा. दीक्षित की कृपा से भी ज्ञानसागर की मोर भी रचनामों का परिचय प्राप्त हुमा । दयोदयधम्मू के प्रस्तावनामाग को पड़ने से प्राव हुमा कि कविवर ने एक दो नहीं पूरे बाईस ग्रन्थों की रचना की है। इनमें कुछ अन्य संस्कृत भाषा में हैं और कुछ हिन्दी भाषा में । कुछ अन्य साहित्यिक हैं और कुछ दार्शनिक। इनमें से कुछ रचनाएं भाचार्य बीविद्यासागर