SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( xi ) मालोचकों द्वारा उपेक्षित हो गया है। किसी भी समालोचक ने इनकी रचनाओं पर समीक्षापरक विचार व्यक्त नहीं किये हैं । उनकी संस्कृत साहित्य-सम्पदा को देखने से ज्ञात होता है कि उन्होंने चार महाकाव्य, एक चम्पूकाव्य प्रोर एक मुक्तक काव्य की रचना की है। यदि समालोचक धर्मनिरपेक्ष होकर उनकी रचनाओं को पढ़ें तो वे पायेंगे कि ज्ञानसागर की रचनाएँ उच्चकोटि को हैं । ज्ञानसागर २०वीं शताब्दी के कवि हैं, अतः भाज के युग में संस्कृत भाषा में रचे गये उनके काव्य महत्त्व रखते हैं । शोध प्रबन्ध में ज्ञानसागर के काव्यों का साहित्यिक मूल्याङ्कन करने का हमारा यही प्रयोजन है कि सहृदय सामाजिक संस्कृत भाषा के प्रप्रकाशित, उपेक्षित किन्तु समाजोपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण साहित्य से परिचित हो सकें । समालोचक प्रत्येक धर्म एवं जाति के साहित्यिकों के प्रति न्याय करें । फिर ज्ञान किसी एक सम्प्रदाय विशेष की पैतृक सम्पत्ति नहीं है । प्रत: भले ही लोग दूसरे सम्प्रदाय के धर्म एवं दर्शन को न मानें, किन्तु उनका वैदुष्य मोर बुद्धिमत्ता तो सभी को स्वीकार करनी चाहिए । जहाँ तक धर्म का प्रश्न है, उसके कुछ मूलभूत तत्त्व सभी सम्प्रदायों में मान्य हैं; यथा अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और मपरिग्रह। इन पांचों महाव्रतों के पालन और पालन के परिणामस्वरूप मिलने वाले लाभ के विषय में सामाजिक को शिक्षा दी है। प्रतः हम चाहते हैं कि कविवर ज्ञानसागर को केवल जन धर्म का कवि न मानकर मानवतावादी कवि माना जाए भोर उनके प्रति न्याय किया जाय । س प्रस्तुत शोष विषय पर साहित्यिक मूल्याङ्कन को प्रपूर्णता पर एक विहङ्गमदृष्टिसंस्कृत साहित्य के इतिहास की ऐसी कोई भी पुस्तक नहीं है, ' जिसमें कवि ज्ञानसागर के व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व पर थोड़ा सा भी प्रकाश डाला गया हो । हां, मुनिश्री ज्ञानसागर जैन ग्रन्थमाला के सम्पादक पं० हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री ने ज्ञानसागर के ग्रन्थों की प्रस्तावना में उनके और उनके ग्रन्थों के विषय में थोड़ा बहुत अवश्य लिखा है । प्रकाशचन्द्र जैन ने भी इन ग्रन्थों के प्रकाशक के रूप में कवि का थोड़ा सा परिचय दिया है । श्रीस्यादवाद महाविद्यालय, वाराणसी के दर्शन विभागाध्यक्ष प्राचार्य पं० श्रमृतलाल जैन ने सुदर्शनोदय काव्यग्रन्थ की १. डॉ० कपिलदेव द्विवेदी द्वारा रचित 'संस्कृत साहित्य का समीक्षात्मक इतिहास' नामक ग्रन्थ में पृ० सं० २६२ पर महाकवि की जयोदय नामक एक कृति का मात्र नामोल्लेख है । लेकिन उक्त कृति को सगं संख्या यहाँ प्रशुद्ध है । क्योंकि डॉ० कपिलदेव द्विवेदी ने जयोदय में बाईस सगं बताए हैं, जबकि हैं पट्ठाईस । -लेसिका
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy