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________________ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य- एक अध्ययन जैनधर्मावलम्वी गृहस्थों के विषय में विशेष व्यवहार की कुछ अनुकरणीय बातें भी कवि ने बताई है। तदनुसार गृहस्थ पुरुष को जीविकोपार्जन के लिये कुछ न कुछ अवश्य करना चाहिये ।' शैशवावस्था में विद्याग्रहण करके युवावस्था में धर्म का पालन करना चाहिये। उसका मन करुणा एवं निर्मल बुद्धि से युक्त होना चाहिये । परस्त्री में सद्बुद्धि रखनी चाहिये । दूसरे की सम्पत्ति में प्रासक्ति नहीं करनी चाहिये । वृद्ध जनों की बातों को सुनना चाहिये । प्रपना प्राचरण दूसरों के अनुकूल बनाना चाहिये । गृहस्थ पुरुष को भी जल छानकर ही पीना चाहिए। पर्व के दिनों में गृहस्थों को उपवास करना चाहिये । इस प्रकार रहित होकर गृहस्थ जीवन सुखपूर्वक व्यतीत करके अन्त में चाहिये ।" 8.4 जैन धर्मानुसार श्रावक को ग्यारह प्रतिमाएं धारण करनी पड़ती हैं, जो इस प्रकार हैं: दर्शन प्रतिमा, व्रत प्रतिमा, सामयिक प्रतिमा, प्रोषध प्रतिमा, सचितत्याग प्रतिमा, रात्रि भोजन त्याग प्रतिमा, ब्रह्मचयं प्रतिमा, प्रारम्भ त्याग प्रतिमा, परिग्रह त्याग प्रतिमा, अनुमति त्याग प्रतिमा प्रोर उच्छिष्ट त्याग प्रतिमा । श्रीज्ञानसागर ने त्यागोन्मुख गृहस्थ श्रावक के लिये जिन ग्यारह नियमों के पालन का प्रादेश दिया है, वे जंनधमं सम्मत उपर्युक्त ग्यारह प्रतिमायें ही हैं, उनका सरल एवं व्यावहारिक प्राशय इस प्रकार हैं (क) उत्तेजक पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिये ( दर्शन प्रतिमा ) । अतिथि को भोजन कराने के बाद भोजन करना चाहिये ( व्रत प्रतिमा ) । (ग) “चमंस्थिते धृते तेले तोये चाऽपि विशेषतः । रसोत्पन्नाः सदा जीवाः सम्भवेयुर्मतं बुधः ॥” - धर्मोपदेश पीयूषवं - अवकाचार, ३०२७ छल प्रपञ्च से संन्यास ले लेना १. बीरोदय, १६।१६ २. बही, १८।२३ - ३९ (क) वोरोदय, १९।२९ (ख) " बस्त्रेणातिसुपोतेन क्षालितं तत्पिवेज्जलम् । महिसाव्रतरभार्य मांसदोषापनोदने ।" - धर्मसंग्रहश्रावकाचार, ३।३४ ४. (क) जयोदय, २३८ (ख) सुदर्शनोदय, ७८(ग) जैनधर्मामृत, ४६३-९४ ५. वीरोदय, १८।४० ६. बेनधर्मामृत, ४१२९-१३६
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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