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________________ महाकवि ज्ञानसागर का जीवन-दर्शन ४.६ (ग) तीनों सन्धामों में भगवान् का स्मरण करना चाहिए (सामयिक प्रकार)। (घ) महमी भोर चतुर्दशी के दिन उपवास करके मन को निश्चल रखना चाहिये - (प्रोषष प्रतिमा) (ङ) भग्नि-पक्व वस्तुमों का सेवन करना चाहिये (सचित्तत्याग प्रतिमा) (च) दो वार से ज्यादा कदापि नहीं खाना चाहिये । प्रच्छा तो यह है कि एक ही बार खाने का अभ्यास करना चाहिये (रात्रि भोजन त्याग प्रतिमा)। (छ) कामसेवन का त्याग करके मन को मात्मचिन्तन में लगाना चाहिये (ब्रह्मचर्य प्रतिमा)। (ज) ब्रह्मचर्य द्वारा इन्द्रिय-संयम करना चाहिए (प्रारम्भत्याग प्रतिमा)। (झ) पूर्वोपार्जित धन के प्रति पासक्ति नहीं रखनी चाहिए (परिग्रह त्याग प्रतिमा)। (ब) दूसरे पुरुषों का भी सांसारिकता से मन हटाते हुए स्वयं सारा समय परमात्मा में लगाना चाहिए (अनुमतित्याग प्रतिमा)। (ट) अपने लिए बनाए गए भोजन की प्रावश्यकता पड़ने पर दूसरों के लिए सहर्ष दान कर देना चाहिए (उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा) ।' जंनी महात्मानों के क्रमिक विकास के सोपानपुरुष वर्गीय जैनी महात्मा जैन-धर्म-ग्रन्थों के परिशोलन से ज्ञात होता है कि जैन-धर्म में गृहस्थ व्यक्ति विरक्त होकर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हैं। जैनधर्ममतावलम्बी गृहस्थ उपर्युक्त ग्यारह प्रतिमानों में से प्रथम छः का पालन करते हैं; और ब्रह्मचारी सातवी, . पाठवौं पोर नवीं प्रतिमामों का पालन करते हैं । २ तत्पश्चात् व्यक्ति के वानप्रस्थ माश्रम में जाने का विधान है। इस आश्रम में पहुंचे हुए व्यक्ति को ही क्षुल्लक कि वा भिक्षुक कहा जाता है। भिक्ष की उपाधि प्राप्त करके पुरुष दसवीं एवं ग्यारहवी प्रतिमानों का भी पालन करते हैं।' १. सुदर्शनोदय, ६५६-६६ २. 'पडत्र गहिणो ज्ञेयास्त्रयः स्युब्रह्मचारिणः ।' -श्रावकाचारसंग्रह (भाग-१) यशस्तिलकचम्पू, उपासकाध्वयन, ८२४ का पूर्वार्द। ३. 'उत्कृष्टः भावको यः प्रक्षुल्लकोऽव सूचितः।। स चाऽपवादलिङ्गी च वामप्रस्थोऽपि नामतः ॥' -श्रावकाचारसंग्रह (भाग-२) धर्मसंग्रह धावकाचार, ६।२७६ ४. 'भिक्षुको दो तु निर्विष्टी ततः स्यात्सर्वतो यतिः ॥' -श्रावकाचारसंग्रह (भाग-१) पस्तिनकचम्पू, उपासकाध्ययन, ८२४ का उत्तरा।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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