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________________ महाकवि ज्ञानसागर का जीवन-दर्शन कवि को प्राचीनकाल से चली पा रही इन परम्परामों पर पूरा विश्वास है।' ___ स्वप्न-दर्शन पर भी अपनी पूर्व-परम्परा के अनुसार उन्हें अत्यधिक विश्वास है। तीर्थङ्कर की माता पूर्व-जन्म से पूर्व सोलह स्वप्न देखती है । पोर मन्तः केवली की माता पुत्रजन्म से पूर्व पांच स्वप्न देखती है।' महाकवि की प्रास्था है कि ये स्वप्न में उत्पन्न होने वाले पुत्र की विशेषतामों का स्पष्ट संकेत श्री ज्ञानसागर ने व्यक्ति के पूर्वजन्मों को भी माना है। उनके प्रत्येक काम्य में पात्रों के पूर्वजन्मों से सम्बन्धित कथाएं इस तथ्य को पुष्टि करती हैं। ज्ञानसागर जी राजा एवं मुनिजनों को राष्ट्र का सम्माननीय व्यक्ति मानते हैं । राजा जिस मार्ग से भी निकले, प्रजा को उसका स्वागत करना चाहिए।' त्याग की साक्षात् प्रतिमा मुनि तो न केवल जनसामान्य के ही, अपितु राजा के भी पुज्य होते हैं। __वह त्यागोन्मुख भोग पर ही विश्वास करते हैं । हिन्दू-संस्कृति के अनुसार वह भी यह मानते हैं कि पुत्र के राज्याभिषेक के पश्चात् पुरुष को तपस्या हेतु तपोवन में चला जाना चाहिए। १. जयोदय, १०।६, एकादश सगं, द्वादश सर्ग; १३॥१-२१ २. वीरोदय, ४।२७ ३. सुदर्शनोदय, २।१४-१८ ४. (क) वीरोदय, ४१४०-६१ (ख) सुदर्शनोदय, २।३६.४० ५. (क) जयोदय, २३।१०-९७ (ख) वीरोदय, ११।१-३७ (ग) सुदर्शनोदय, ४।१७-३७ (घ) श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, ४॥२२-३७ (ङ) दयोदय चम्पू, लम्ब १, श्लोक २१ के बाद चौथे गवांश से दूसरे लम्ब तक। ६. जयोदय, २११५१-५२ ७. श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, ६१३४ ८. वही, ४१६ १. (क) अयोग्य, २११६७ (स) वही, २६।३८ (ग) सुदर्शनोदय, ४।१४ (घ) श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, ६।३३
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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