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महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-- एक अध्ययन
स्पष्ट है । प्रायः सनातनधर्मावलम्बी हिन्दुधों की बालिकाएं अपने विवाह के अवसर पर सर्वप्रथम गौरी पूजन के लिए जाती हैं, परन्तु कवि ने ऐसे अवसर पर जिनपूजन की ही प्रेरणा दी है । 'जयोदय' की नायिका सुलोचना अपने विवाह के अवसर पर श्रीजिनदेव के ही पूजन हेतु जाती है ।
मंत्र शक्ति पर भी कवि का विश्वास है । 'गमो परिहंताणं' इस मंत्र के बल से ही एक ग्वाले ने सेठ के पुत्र के रूप में जन्म लिया और जिनभक्ति के फलस्वरूप मोक्ष भी प्राप्त किया। गारुडिक ने अपनी मंत्र शक्ति से ही राजा सिहसेन को काटने वाले दुष्ट सर्प की पहिचान की।
कवि ने इन्द्राणी, श्री, ही प्रादि देवियों एवं इन्द्र, कुबेर इत्यादि देवगणों की भी सत्ता स्वीकार की है। जिस प्रकार सनातन धर्म वाले इन देव-देवियों को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के शासन में स्वीकार करते हैं, उसी प्रकार कवि ने अपनी परम्परानुसार इन देव-देवियों को जिनेन्द्रदेव का सेवक बताया है । '
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कवि ने मानव जाति के प्रतिरिक्त एक मोर जाति बताई है - व्यन्तर एवं व्यन्तरी । कवि के अनुसार जब कोई व्यक्ति प्रतिशोध की भावना से प्रात्मघात करता है, तब उसका इसी योनि में जन्म होता है। इस योनि का स्वभाव प्रतिपक्षी के साथ दुर्व्यवहार करने का ही होता है । "
श्री ज्ञानसागर का ज्योतिर्वित् एवं ज्योतिष, दोनों पर ही विश्वास है । उनके अनुसार प्रत्येक शुभकार्य के लिए देवज्ञों से अथवा स्वयं मुहूतं जान लेना चाहिए । ७
हिन्दू संस्कृति के सोलह संस्कारों पर उनकी प्रास्था है। उनके अनुसार नामकरण, विद्यारम्भ, विवाह इत्यादि संस्कार उचित समय पर हो होने चाहिएँ। 5 लयकुमार और सुलोचना के विवाह के अवसर पर वर को विवाहमण्डप में बुलाना, मन्त्रोच्चारणपूर्वक पाणिग्रहण कराना, बारात का सहर्ष स्वागत करना मोर हर्षमय विधान सहित वर-वधू को विदा करना प्रादि बातों का वर्णन यह बताता है कि
१. वीरोदय, २।३३-३६
२. जयोदय, ५।६१
३. सुदर्शनोदय, ४।२६-२७
४. श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, ४।१२-१४
५.
वोरोदय, पंचम एवं सप्तम सगं ।
६. (क) जयोदय, २०१४२-१४३
(ख) सुदर्शनोदय, ८३५, १०७६-६३
७. दयोदयचम्पू, ४ श्लोक १७ के पूर्व का गद्यांश ।
६.
(क) वीरोदय, ८।२२
(ख) सुदर्शनोदय, ३।१५ तथा २९