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महाकवि शानसागर के काव्य-एक अध्ययन व्यवस्था को जन्म के अनुसार नहीं, बरन् कर्मों के अनुसार मानते हैं। इसीलिए उन्होंने ब्राह्मणों के कुछ मावश्यक ममण बताए हैं, जो इस प्रकार है :
ब्राह्मण को सत्य, अहिंसा, अस्तेय, बार्य पोर अपरिग्रह का पालन करना चाहिए, तपश्चरण, इनियसंयम, शोकराहित्य में उसकी प्रवृत्ति होनी चाहिए, उसे छल प्रपंच से सबंधा दूर रहना चाहिए; उसमें शांति, संयम और शुद्धता की विकता होनी चाहिए, प्राणिमात्र के प्रति क्या होनी चाहिए; उसे पात्म-चिन्तन करना चाहिए, भौर परनिन्दा से दूर रहना चाहिए । निस्पृह मन, वचन पोर काय से शुरु-पर्वतभाव की प्राप्ति, रात्रिभोजन का परित्याग करने वाला, एक समय साने वाला, निर्जन्तुक जल को पीने वामा पुरुष ही ब्राह्मण कहलाता है । समाज में जिन्हें ब्राह्मण कहा जाता है वे ब्राह्मण नहीं है, वास्तविक ब्राह्मण तो उपर्युक्त गुणों सम्पन्न रहने वाला व्यक्ति ही होता है।'
कवि का दृष्टिकोण है कि लोग साधुषों की बात का विश्वास करें, उनका पावर करें। यही कारण है कि उन्होंने अपने काम्य में स्वप्नों का फल बताने के लिए सम्भ्रान्त सेठ वषभदास को जिनमन्दिर के मुनि के पास भेजा।२ समाज के लोगों से उन्हें अपेक्षा है कि अपने पूज्य जनों के प्रति प्रादर-भाव रखें और उनकी कही बात को विनम्र होकर सुनें । सेठ वृषभवास का पुत्र सुदर्शन इस भाव का उदाहरण है। वह चम्पापुरी के राजा के उच्चपद का विचार करता हुमा उसके द्वारा अपने प्रति किये गए दुव्यवहार पर ध्यान नहीं देता। सेठ वृषभदास के दीक्षा लेने पर स्वयं भी दीक्षा लेने का विचार करने लगता है। इसी प्रकार वीरोदय महाकाव्य के नायक भगवान महावीर भी पिता द्वारा प्रस्तुत अपने विवाह के प्रस्ताव को जिस विनम्रता से प्रस्वीकत करते हैं, वह देखने योग्य है।"
महाकवि के मन में शिक्षित समाज को झाडी है । देश से निरक्षरता को हटाने की प्रबल इच्छा है। उसकी धारणा है कि प्रत्येक अभिभावक का कर्तव्य है कि वह अपने बच्चों को शिक्षित करे। यही कारण है कि उसके दयोदयचम्पू काव्य में ग्राम के निवासी गोविन्द ग्बाले द्वारा अपने पालित पुत्र सोमदत्त को यथाशक्ति शिक्षा दिलवाने का वर्णन है ।।
१. वीरोदय, १४१३५-४३ २. सुदर्शनोदय, २।२२:२४ . ३. वही, २०२२-२४ ४. वही, ४१५ ५. वीरोदय, १२३, २८-४५ ६. क्योदयचम्मू, नम्ब ४, श्लोक के पूर्व एवं बायका गबभाग ।