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________________ नवम अध्याय महाकवि ज्ञानसागर का जीवन-दर्शन बोवन-दर्शन : एक संक्षिप्त परिचय संसार में जितने भी प्राणी जोवन धारण करते हैं, वे पूर्णतया प्रात्मनिर्भर नहीं होते । समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था, संस्कृति, धर्म और दर्शन -संसार में उपलब्ध इन तत्त्वों से उनका जीवन प्रवश्य ही प्रभावित होता है। फलस्वरूप इन्हीं के नियन्त्रण में रहकर वे अपना क्रियाकलाप करते हैं। प्राणियों को समाज, राजनीति प्रादि की कुछ बातें अनुकूल हैं और कुछ प्रतिकूल । अपना जीवन सफल बनाने के लिए लोग प्रतिकून बातों में परिवर्तन करके उनको अनुकूल बनाना चाहते हैं। वे एक रिशिष्ट प्रकार का समाज राजनीति, अर्थव्यवस्था, संस्कृति एवं धर्म चाहते हैं। जीवन को प्रभावित करने वाले समाज, राजनीति प्रादि इन तत्वों के विषय में व्यक्ति की ऐसी धारणा को ही 'जीवन-दर्शन' कहा जाता है। कोई व्यक्ति कसा जोवन चाहता है, यही उसका जीवन दर्शन है। कवि का जीवन के प्रति दृष्टिकोण क्या होता है ? यह उसके काम्यों का परिशीलन करने से अच्छी प्रकार ज्ञात हो सकता है। यहां अपने पालोच्य महाकवि ज्ञानसागर का जीवन के प्रति दृष्टिकोण उनके काव्यों के प्राधार पर प्रस्तुत किया जा रहा है। कवि को सामाजिक विचारधारा .. श्री ज्ञानसागर के काव्यों के परिशीलन से ज्ञात होता है कि उन्हें ऐसा समाष प्रिय है, जिसके लोगों को धर्म एवं मानवता के प्रति प्रास्था हो तथा भारतीय संस्कृति के मूलतत्त्व अधिकाधिक मात्रा में हों। मुनियों का कर्तव्य लोगों में धर्म के प्रति चेतना लाना हो, शासक प्रजारंजन करते हुए राज्य करे, बरिणग्जन प्रपं. व्यवस्था को संभाले, सेवक उपर्यक्त तीनों श्रेणियों के लोगों की सेवा करें। स्पष्ट है किबी मानसागर भारत में प्रचलित वर्णव्यवस्था को मानते है । परन्तु यह वर्ण १. दोश्येडशीमङ्गमतामवस्थां तेषां महात्मा कृतवान् व्यवस्थाम् । विभज्य तान् भत्रिय-वैश्य-शूद्र-भेदेन मेषा-सरितां समुद्रः ।। यस्यानुकम्पा हदि तूदियाय स शिल्पकल्पं वृषलोत्सवाय । निगव विम्यः कृषिकर्म चायमिहाशास्त्रं नपसंस्तवाय ॥ -बोरोग्य, १८।१३-१४
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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