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महाकवि ज्ञानसागर का जीवन-दर्शन
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श्रीज्ञानसागर की नागरिक समाज की अपेक्षा ग्रामीण समाज में सरलता एवं सौहार्द के अधिक दर्शन होते हैं। जिस अनाथ बालक के विषय में सुनकर सेठ गुरणपाल उसको भारने के लिए तत्पर हो जाता है, उसी बालक को देखकर वस्ती में रहने वाले गोबिन्द-ग्वाले के मन में दया एवं वात्सल्य का स्रोत उमड़ने लगता है ।
श्रीज्ञानसागर ने वर्णव्यवस्था के आधार पर ही विवाह-संस्कार को. मान्यता दी है। राजकुमारी सुलोचना मोर जयकुमार का विवाह घोर सेठ सागरदत्त की पुत्री मनोरमा के साथ सेठ वृषभदास के पुत्र सुदर्शन का विवाह इस तथ्य के उदाहरण हैं ।
सम्भवतः कविवर ज्ञानसागर पुत्र को पुत्री से अधिक महत्त्व देते हैं, इसलिए उनके काव्यों में पुत्र जन्मोत्सव का वर्णन तो मिलता है, किन्तु पुत्री के जन्मोत्सव का उल्लेख तक कहीं नहीं मिलता। किन्तु उन्होंने विवाह में पुत्र की इच्छा की भाँति ही पुत्री की भी इच्छा को महत्व दिया है। सुलोचना स्वयंवर' मोर सुदर्शन मनोरमा विवाह इस तथ्य के उदाहरण हैं ।
पति-पत्नी का दाम्पत्य जीवन सुखमय हो, इसके लिए कवि का विश्वास है कि पुरुष को एकपत्नीव्रत होना चाहिए। हो, यदि राजनीति की दृष्टि से अनेक विवाह करने पड़े, तो कोई बात नहीं। इसी प्रकार पत्नी को भी चाहिए कि वह पति में एकनिष्ठ होकर रहे, प्रन्वथा उसकी दशा रानी प्रभवमती के समान होगी ।
afa का यह भी विश्वास है कि स्त्रियों को बहुत अधिक स्वतन्त्रता देना ठीक नहीं, पति का पत्नी पर नियन्त्रण होना चाहिए; अन्यथा वह अपनी स्वतन्त्रता का दुरुपयोग कर सकती है। साथ ही कवि ने स्त्री के सहचरी रूप को दासीरूप से
१. वही, लम्ब ३, श्लोक ३ के बाद का गद्यभाग ।
२. वही, लम्ब ३, श्लोक ३ के बाद का गद्यभाग तथा श्लोक १०
३. (क) जयोदय, १२वीं सगं ।
(ख) सुदर्शनोदय, ३।४८
४. (क) वीरोदय, ८१-६
(ख) सुदर्शनोदय, ३।४-१४ ५. जयोदय ६।११६-१२१
६. सुदर्शनोदय, ३।४२-४८
७. वही, ६ श्लोक २६ के पहले का गीत ।
८. दयोदयचम्पू, लम्ब ७, श्लोक १२ के बाद के गद्यांश । ९. सुदर्शनोदय, ८।३५