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________________ महाकवि भानसागर के संस्कृत-प्रन्थों में मावपक्ष ३९५ यहाँ वैदर्भी शैली में प्रस्तुत भगवान् महावीर की बाल्यावस्था को सुन्दर चेष्टामों का यह सन्दर वर्णन किस सहृदय को आकर्षित नहीं करेगा? (ङ) “सुमानसस्याथ विशांवरस्य मुद्रा विभिन्नार सरोरुहस्य । मुनीशभानोरभवत्समीपे लोकान्तरायततमः प्रतोपे । निशीक्षमाणा नगवंस्तदीयपादाम्बुजाल: महचारिणीयम् । मेरु सुरदं जलधि विमानं निर्धू मह्नि च न तदिदानः ।। कि दुष्फला व! मुफ रा फला वा स्वप्नावलीयं भवतोऽनुभावाद । भवानहो दिव्यगस्ति तेन संश्रोतुमिच्छा हृदि वर्तते नः ।।"' उपर्युक्त श्लोकों में स्वप्नावली के तात्पर्य के प्रति सेठ सुषमदास को जिज्ञासा वरिणत है। "कदा समय: स समायादिह जिनपूजाया: ॥ कञ्चनकलशे निर्मलजलमधिकृत्य मजुगङ्गायाः । वारा धाराविसर्जनेन तु पदयोजिनमुद्रायाः । लयोऽस्तु कलङ्ककलायाः ।। स्थायी ॥ मलयगिरेश्चन्दनमय नन्दनमपि लात्वा रम्भायाः । केशरेण साधं विसजेयं पदयोजिनमुद्रायाः, . न सन्तु कुतश्चापायाः ॥स्थायी २ ॥२ इस उदाहरण में स्वाभाविक प्रलङ्कृतता, सङ्गीतमयता, मधुरता, सरलता पादि गुणों से परिपूर्ण वैदर्भी शेलो है। (च) मा सुन्दरो नाम बभूव रामा वामासु सस्विधिकाभिरामा । राजाधिराजस्य रतीश्वरस्य रतिर्यया प्रीतिकरीह तस्य । वश्येव पञ्चेषरसप्रवीणा दासीव सत्कर्मविधी धुरीणा। भत्र सभाया भुवि वाचि वीणा साचिम्य इन्द्रस्य शचीव लीना ॥ राज्ञः सदा मोहकरोव युक्तियां मौक्तिकोत्पत्तिकरीव शुक्तिः । पनङ्गसन्तानमयोव मुक्ति-स्थलीह लावण्यवतीव मुक्तिः ॥3 इन पंक्तियों में चक्रपुर के राजा अपराजित की रानी का गुणसमूह एवं सौन्दर्य वरिणत है । शब्दावली में सरलता, माधुर्य, प्रवाह इत्यादि विशेषताएं बंदी शैली की हो पोषिका हैं। रुचिकरे मुकुरे मुखमुद्धरन्नय कदापि स चक्रपुरेश्वरः । कमपि केशमुनोक्ष्य तदा सितं समयदर यमदूतमिवोदितम् ॥ १ सुदर्शनोदय, ३१३३,३५ २. बहो, ५ बतुर्थ मोत के प्रथम दो भाग । ३. श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, ६।११-१३
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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