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________________ ३८२ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन कवि श्रीज्ञानसागर के संस्कृत काव्य-ग्रन्थों की भाषा श्रीज्ञानसागर ने अपने कामों में लौकिक संस्कृत भाषा का प्रयोग किया है। परन्तु उनके काव्यों में कुछ स्थलों पर समाज में समाई हुई उर्दू भाषा के भी कुछ पाम्ब मा गये हैं। जैसे 'मेवा', 'अमीर'२, 'नेक', 'शतरंज', 'बाजी', 'कुरान", फिरङ्गो', 'बादशाह', 'खरीदी' इत्यादि । देश में प्राजकल प्राय: उर्दू मिश्रित हिन्दी बोली जाती है। प्रतः अनायास ही ये शब्द कवि के काव्यों में मा गये हैं । कवि के काव्यों में 'जयोदय' महाकाम्प की भाषा में प्रौढता, मधुरता, प्रासादिकता, पालङ्कारिकता इत्यादि गण साथ ही देखने को मिलते हैं । अन्य काव्यों की भाषा 'जयोदय' की प्रपेक्षा सरल है। कवि ने अपनी भाषा को प्रभावपूर्ण बनाने के लिए लोकोक्तियों पोर मुहावरों का भी प्रयोग किया है ।।'' उन्होंने समस्त पदों का प्रयोग भी प्रत्यल्प मात्रा में किया है, जिससे भाषा में सरलता का भी गुण पा गया है । उनको भाषा विषय-वर्णनानुरूप भी है । कवि के 'जयोदय', 'वीरोदय', 'सुदर्शनोदय' एवं 'योदयचम्पू' की भाषा को सक्षक्तता के विषय में तो कोई विवाद मेरे मन में नहीं है। परन्तु 'श्रीसमुद्रदत्तचरित्र' की भाषा में यत्र-तत्र शैथिल्य के दर्शन हो जाते हैं। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि कवि ने अपने काव्यों में देशकाल एवं विषयवस्तु के अनुरूप ही भाषा का प्रयोग किया है। १. वीरोदय, १११ २. वही, १३५ .. . . ३. बही. ४. वही, १७।१४ ५. वही, १७।१४. . ....... । ...६. वही, १९१० . . ... .. .. .. ७. वही, १७२८ . 5. जयोत्य, १६।२० : :. . ... वही, २७।३७ १०. वही, १६१०२, ११. (क) 'नाम्बुषो मकरतोऽरिता हिता' (जल में रहकर मगर से वैर ?) --जयोदय, २७० (ख) वंशे नष्टे कुतो वंश-वाद्यस्यास्तु समुद्भवः' (न रहे बांस न बजे बांसुरी)। .. -दयोदयचम्पू, ३।४
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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