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________________ (viii) हार्दिक इच्छा थी कि महाकवि ज्ञानसागर जी के काव्यों की अनुसन्धानात्मक समीक्षा कराई जाय । परन्तु टीका-टिप्पणी के प्रभाव में इन सभी काव्यों की शोधपरक शुद्ध सर्वाङ्गीण समीक्षा करना निश्चय ही चारों तीर्थं धामों की पैदल पवित्र यात्रा करने के ही समान प्रत्यन्त कठिन काम था। लेकिन मुझे यह जानकर हार्दिक हर्ष हुआ है कि डॉक्टर (कुमारी) किरण टण्डन, एम० ए०, साहित्याचार्य ( प्राध्यापक, संस्कृत विभाग, कुमायूँ विश्वविद्यालय, नैनीताल) ने महाकवि ज्ञानसागर के इन समस्त संस्कृत काव्यों पर अपनी नीरक्षीरविवेकिनी सहज प्रज्ञा द्वारा शोधग्रन्थ के रूप में अनुसन्धानपरक शुद्ध एवं सर्वाङ्गीण समीक्षा प्रस्तुत करके मेरे उपर्युक्त संकल्प को भलीभाँति साकार कर दिया है। इसके लिए वह निश्चय ही विपुल प्रशंसा तथा बधाई की पात्र हैं । डॉक्टर टण्डन का यह शोधग्रन्थ इस तथ्य की साक्षी है कि उन्होंने महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत काव्यों की समस्त विशेषताओं प्रोर उपादेयताओं को प्रकाश में लाने के लिए प्रचुर एवं सुनियोजित परिश्रम किया है। उन्होंने इसमें महाकवि के जीवनचरित, काव्यों के कथानकों के स्रोत उनमें महाकविकृत परिवर्तन-परिवर्धन एवं उनका श्रीचित्य काव्यों की विधानों का प्राकलन, वर्गीकरण एवं उनकी सामाजिक उपादेयता, प्राकृतिक तथा वैकृतिक पदार्थों का वर्णनविधान, भावपक्ष, कलापक्ष, महाकवि की सामाजिक, राजनैतिक, प्रार्थिक, सांस्कृतिक धार्मिक एवं दार्शनिक विचारधाराम्रो आदि समग्र अपेक्षित बिन्दुनों पर अपने व्यापक, गम्भीर समीक्षात्मक तथा मौलिक विचार प्रस्तुत किए हैं तथा इन्हीं विचारों के प्राधार पर संस्कृत साहित्यकारों में महाकवि ज्ञानसागर का और संस्कृतसाहित्य में उनके इन काव्यों का निष्पक्ष भाव से स्थान निर्धारित किया है । इस प्रकार समीक्षा के लिए अपेक्षित प्रायः समस्त बिन्दुनों पर अपनी सत्त्वसम्पन्न प्रतिभा द्वारा भ्रान्तिहीन एवं सर्वाङ्गीण निर्मल प्रकाश डालकर विदुषी लेखिका ने अपने इस शोधग्रन्ध को महाकविज्ञानसागरकाण्य- जिज्ञासुजनों के लिए कल्पतरुकल्प बना दिया है, इसमें मुझे कोई सन्देह नहीं है । फलस्वरूप मुझे यह सुदृढ़ विश्वास है कि यह शोध ग्रन्थ संस्कृत साहित्य के समीक्षाजगत् में अवश्य ही श्रीवृद्धि करेगा और संस्कृतसाहित्य के उपासकों के लिए निश्चय ही नितान्त अभिनव, मौलिक, रोचक एवं परमोपयोगी उपहार सिद्ध होगा । मेरा यह भी विश्वास है कि डॉ० टण्डन के इस शोधप्रबन्ध को भलीभाँति समझने में पाठकों को किसी भी प्रकार की कोई कठिनता नहीं होगी। क्योंकि उन्होंने अपने सम्पूर्ण शोधग्रन्थ को वैदर्भी भाषा-शैली में लिखा है भौर प्रतिपाद्य का प्रतिपादन संवेदनापूर्वक अतीव विशदता के साथ किया है। प्रथ से लेकर इति पर्यन्त अनुच्छेदों, वाक्यों और शब्दों का सन्निवेश भी उन्होंने बड़ी ही सुनियोजित, सुविचारित एवं सुगठित विधि से किया है। फलस्वरूप शोधग्रन्थ का प्रत्येक अध्याय, प्रत्येक अनुच्छेद, प्रत्येक वाक्य मोर प्रत्येक शब्द अपनी-अपनी सीमा के
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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