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(ग) ह्रस्व रकार धीर कार का प्रयोग । (ब) समासरहित अथवा स्वल्पसमासवाली रचना । '
महाकवि ज्ञानसागर के काव्य
महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत काव्यों में माधुर्य गुण महाकवि ज्ञानसागर के सभी काव्य शान्तरस प्रधान हैं। उनमें यत्र-तत्र संयोग शुङ्गार और करुण रस का भी प्रयोग मिलता है। ऐसी स्थिति में उनके ara में माधुर्य-गुण का प्राचुर्य होना स्वाभाविक है। इस तथ्य से सम्बन्धित कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं
(क) 'बाहिरी भविता सविता पिता तदुदयेन हसिष्यति पङ्कजम् ।
लिनि चिन्तयतीति विवस्थिते द्रुतमिहोद्भजतेऽम्बुजिमों गजः ॥ २ (क) 'कलकतामिति कतनपुरं करितीकङ्कतकङ्कणम् ।
मृगeaf मुखपद्मविक्षया रथमिनः कृतवान् किल मम्परम् ॥ ३ (ग) “सते व मृद्धी मृदुपल्लवा वा कादम्बिनी पीनपयोधरा बा । समेखलाभ्युन्नतिमनितम्बा तटी स्मरोत्तानगिरेरियं वा । कापीव बापी सरसा सुवृत्तमुद्देव शाटीव गुरणंकसत्ता । विधोः कला वा तिथिसस्कृतीद्वाऽलङ्कारपूर्णा कवितेव सिद्धा ।।'
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(घ) "नरो न यो यत्र न भाति भोगी भोगो न सोऽस्मिन्न वषोपयोगी । quोपयोगोऽपि न सोऽथ न स्याद्यथोत्तरं संगुणसम्प्रयोगी ॥ शीलाम्बिता सम्प्रति यत्र नारी शीलं सुसन्तानकुलानुसारि । पित्रोरनुज्ञामनुवर्तमाना समीक्ष्यते सन्ततिरङ्गजानाम् ॥ ४ (ङ) "कामोsस्यसी किमुत मे हृदयं विवेश
सम्मोहनाय किमिहागत एष शेषः ।
: प्राखण्ड लोऽयमथवा मृदुसन्निवेशश्चन्द्रो ह्यवातरहो मम सम्मुदे सः ।। " उपर्युक्त उदाहरणों में प्रथम उदाहरण में शान्त रस, द्वितीय में वसन्त, तृतीय में जिनमति का सौन्दर्य, चतुर्थ में नगर-बांन और पंचम उदाहरण में शुङ्गार
१. " मूनि वर्गात्यगाः स्पर्शा प्रटवर्गा रणी लघू प्रवृत्तिमंध्यवृत्तिर्वा माधुर्ये घटना तथा ॥"
२. नवोदय, २५/३८
३. वीरोदय ६।२६
४.
५.
क. प्रध्ययन
सुदर्शनोदय, २।५-६ श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, ६।३-४ चम्पू, ७।२३
- काव्यप्रकाश (मम्मट), ८७४