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________________ ३७६ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन । शृङ्गार एवं करुण रस प्रधान होता है । फारसी एवं उर्दू भाषा का प्रयोग होता है । मुसलिम समाज के अतिरिक्त हिन्दुनों में भी शैली का प्रचार पाया जाता है। इसको गाने वाले 'कव्वाल' कहलाते हैं। कवाली के साथ ढोलक एवं तालियां वजाई जाती हैं । इसे द्रुत लय में गाया जाता है । इसमें एकताल, त्रिताल, झपताल रूपक एवं पश्तो इत्यादि तालों का विशेष प्रयोग होता है।' "समस्ति यताऽश्मनो ननं कोऽपि महिमून्यहो महिमा स्थायी।। न स विलापी न मुद्वापी दृश्यवस्तुनि किल कदापि । समन्तात्तत्र विधिशापिन्यदृश्ये स्वात्मनीव हिया ।समस्ति. ॥ नरोत्तमनवीनता यस्मान्न भोगाधीनता स्वस्मात् । सुभगतमपक्षिणस्तस्मात् किं करोत्येव साप्यहिमा । समस्ति. २ ॥ न एक खलु दोषमायाता सदानन्दा समा याता। क्वापि बाधा समायाता द्रुमालीवेष्यते सहिमा । सगस्ति. ३ ॥ इयं भराधितास्त्यभित: कण्टकर्यत्पदो रुदितः । स चमसमाश्रयो यदितः कुतः स्यात्तस्य वा महिमा ॥ समस्ति. ४ ॥ संगीत-शास्त्रियों ने जिस राग गायन का जो समय बताया है, श्री ज्ञानसागर ने अपने गीतों का भी वही समय रखा है। काफोहोलिकाराग मोर श्यामकल्याण राग का गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर है। सुदर्शन ने अपने सन्ध्याकालीन पूजन में ही इन गीतों को गाया है। सारंग राग गायन का समय दिन का दूसरा प्रहर है। कवि ने इस राग में निबद्ध गीत की विषय-वस्तु के रूप में वसन्तबेलावर्णन का चयन किया है । चम्पापुर के सभी नगरवासियों ने दोपहर में वसन्तोत्सव और वन-विहार किया है। . संगीत भावपक्ष को प्रबल बनाने का मधुरतम साधन है। अपने काम्यों में जहां-जहां कवि ने इन गीतों को निवड किया है, वहां-वहाँ कवि की संगीतप्रियता का परिचय तो मिलता हो है, साथ ही उस-उस स्थल का काम्य-सौन्दर्य भी बढ़ १. (क) विक्रमादित्य सिंह निगम, संगोत कोमुदी, पृ० सं० ११३-११४ (ब) शान्तिनोवधन, संगीतशास्त्रदपण, पृ० सं० ६६-६७ (ग) बसन्त, संगीत-विशारद, पृ० सं० १५४ २. सुदर्शनोदय, ८ पहला गीत ।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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