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________________ महाकवि शामसागर के संस्कृत-प्रन्यों में कलाप जाति-पाडव बादी-रे ". संवादीमहाकवि द्वारा इस राग में निबट एक पोत उदाहरण के रूप में प्रस्तुत "स वसन्त प्रागतो हे सन्तः, स वसन्तः ।। परपुरा विप्रवराः सन्तः सन्ति सपदि सूक्तमुदन्तः ।। लताजातिरुपयाति प्रसरं कौतुकसान्मधुरवरं तत् ।। लसति सुमनसामेष समूहः किमुत न समि विस्फुरवन्तः ।। भूरानन्दमयीय सकला प्रचरति शान्तः प्रभवं तत् ॥' सौराष्ट्रीय राग इस राग का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है :राग-सौराष्ट्रीय, संवादी-पज .. थाट-भैरव, स्वर-दोनोंध, वादी-मध्यम, गायन समय-प्रातःकाल' उदाहरण "न हि परतल्पमेति स ना तु स्थायी किन्तु भूरागस्य भूयाद् दुषो विषदे बात, ... . मणिकनमणि निबयशोमणिसुलभं च जहातु ।.... . न हि परतल्पमेति स ना तु ॥१॥ भोजने भक्तोज्झिते भवि वो बनेश्वरि, भात. स्वकरोऽपि स कक्करो न हि परोशमपि यात। न हि परतल्पमेति स ना तु ॥ " न्याली सङ्गीत में दो गायन शैलियां हैं-बड़ा ख्याल एवं छोटा स्याल । कबाली छोटा स्यान नामक मायिकी का भेद है। इसका पाविष्कार सबसे प्रथम चौदहवीं शताब्दी में अलाउद्दीन खिलजी के बरवार के सुप्रसिव संगीतज्ञ, कवि तथा राममंत्री हजरत ममीर खुसरू ने किया था। इस गीत की कविता छोटो होती है। गीतों में १. सुदर्शनोदय, ६ प्रथम गीत । २. सौराष्ट्रोयं भैरवस्यावमेले मांशः पूर्णो अवतद्वन्दयोगी। मारोहे स्यात्तीपोऽन्योवरोहे प्रातर्गयो दुर्बलोऽस्मिन्मिषायः॥" ...... -रामकललामा विष्णुनारायण भातसडे, हिन्दुस्तानी संगीतपति, प.सं०४१ ३. सुदर्शनोदय, ६७ गीत के प्रथम दो भान . .१० ११६
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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