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________________ ३५६ (घ) निर्गमनविधिचक्रबन्ध + 媽 ו 2200 "निर्विण्णस्य जयस्य संसृतिपथः सिद्धि समिच्छो पुनः, गम्भीरां समवाप्य सम्मतिमतः पृच्छांस साक्षात्कविः । मर्मस्पर्शितया प्रबन्धति सतां यं कञ्चिदीशो विधिम्, विष्ण्योत्तानितसङ्गतैः स महितो नमण्यविघ्नो निधिः ॥ " - जयोदय, २६।१०७ सङ GE 5 F F F OFFF (a) महाकवि ज्ञानसागर के काव्य- एक प्रध्ययन स तैः 3. 902 8 अब ब A 5 हैं 15 प्र प्र . 4. 24 P स्प A च श्र थ ल ख क ष ष्ट PR S (३) CR) () प्रस्तुत चक्रबन्ध के घरों के प्रथमाक्षरों को पढ़ने से 'निर्गमनविधि' शब्द बनता है । इस शब्द का तात्पर्य यह निकलता है कि इस सगं में जयकुमार के परिग्रह-स्याग कर नगर से निकलने का वर्णन दिया गया है ।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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