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महाकवि मानसागर के संस्कृत-प्रन्थों में कलापस () जयकुपतये सरपर्मदेशनाचक्रवन्ध
"जग्मुनि तिसत्सुखं समषिकं निर्देशतातीतिपम, यस्मादुत्तमषमंतः सुमनसस्ते शश्वदुभाषितम् । कुज्ञानातिगमन्तिमं सुमनसा तेनाजितः सिद्धये, येनासो जनिरापति, सकुशला पञ्चाय तच्छित्तये ॥"
-जयोदय, २७।६६
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प्रस्तुत चकबन्ध के परों में विद्यमान प्रपमाक्षरों और तत्पश्चात षष्ठामरों को मिनाकर पढ़ने से 'जयकुपतये सदधर्मदेशना'-ये दो शब बनते हैं। इनका तात्पर्य यह निकलता है कि कवि ने इस वर्ग में राजा जय के प्रति ऋपभदेव का उपदेश पणित किया है।