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महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-प्रन्थों में कलापक्ष
(म) वयंसद्भावनाचक्रवन्ध
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" जन्मात जरादितः समयभुच्चिन्तामथागाच्छुभाम्, यस्नोद्वाह्यमिदन्तु राज्यभरकं स्थाने समाने ध्रुवम् । सद्भूयामहमत्र कुत्र भवतो निक्षिप्य सम्यङ्मनाः, नानिष्टं जनताऽऽयति प्रसरताद् भातुत्सवश्चात्मनाम् ॥”
-जयोदय, २५/८०
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प्रस्तुत चक्रबन्ध के घरों के बनता है, जो इस बात का द्योतक है उठती हुई बेराग्यभावना का वर्णन किया है ।
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प्रथमाक्षरों को पढ़ने से 'बयसद्भावना' शब्द कि कवि ने इस सर्ग में जयकुमार के मन में