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महाकविज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन
() गजपुरनेतुस्तीर्यविहरणम चक्रबन्ध
"गच्छन्वं सह तीर्थदेशमनयासी हंसगत्याऽखिलम्, जन्मानर्षमय वजन्नमलहृत्प्रालम्पबोषोऽवने । पुण्यात्प्रापितविश्व एवमनिशं प्राणप्रिय: पूजितुं, तुष्टया प्रागमयज्जयः सुपुरुषो रक्त्याह्वनेहोऽपि तु ॥"
-जयोदय, २४।१४८
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प्रस्तुत चकबन्ध के अरों के प्रथमाक्षरों और षष्ठामरों को क्रम से पढ़ने पर गजपुरनेतुस्तीर्थविहरणम्' शब्दसमूह बनता है । यह शब्द समूह इस बात का . घोतक है कि कवि ने इस सर्ग में जयकुमार के तीर्थविहार का वर्णन किया है।