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महाकवि नामसागर के संस्कृत-प्रन्थों में कलापक्ष (ब) रम्पतिविमवाचकबन्ध
"दम्भातीतं कृत्वा मनोविशदभावि .
पषि व पासोमसुतो सत्यारम्भम् । .. • तिष्ठतः स्म सद्धर्मभावना सभावा वारादपिकृतिताविभो भन्यो वा।"
-जयोदय, २३॥६७
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प्रस्तुत पाप के छहों परों में विद्यमान प्रथमाक्षरों को एक साथ मिला पर पढ़ने से 'बम्पतिविमवा' शन्द बनता है। इस पद से यह तात्पर्य निकलता है किकवि ने इस सर्ग में सुलोचना भोर जयकुमार के पूर्वजन्मों का और उनके द्वारा प्राप्त विम्य विभूतियों का वर्णन किया है।