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महाकविज्ञानसागर के काम्य-एक म्यान
(क) मियः प्रवर्तनस चकबन्ध
"मिथुनमिति भवत्प्रणयमुत्सवस्पले घृतसितापरवगतहितम्। प्रतिपय विभवममुकस्य पुनः ॥" नयामि कपने प्रणबमुत नः॥"
-जयोदय, २२९१
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प्रस्तुत पक्रवन्ध के छहों परों में विद्यमान प्रथमाक्षरों को मिलाने से 'मिषः प्रवर्तनम्'-यह शब्द बनता है। इस शब्द से हमें यह संकेत मिलता है कि कवि ने इस सर्ग में सुलोचना मोर जयकुमार के मैयुनव्यापारों (भोग-विलास) का वर्णन किया है।