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"महाकविमानसागर के संस्कृत-अन्यों में कलापक्ष (५) पुरमापजयावन्ध
"पुत्रीन्तु सुत्रितसद्गुणं विदुषीं सकाशीराडुडुपरम्याननां परिणाप्य सद्विधिनाघुना निपुणात्मजः । मानवशिरोमणिरात्मविन्निवबन्धशर्मण्याशयम, यशसां पुनस्तरसां समागमपण्डितो जगति यः ।।".
-अबोदय, २११७
कामियाजाला
DERDEREDEOकाबाबबाह
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प्रस्तुत पक्रवन्ध के घरों में विद्यमान प्रथम प्रक्षरों को मिलाने से 'पुरमापर पब्दि बनता है। इस शब्द का तात्पर्य निकलता है कवि ने इस वर्ग में . जयकुमार से अपनी नगरी हस्तिनापुर पहुंचने का वर्णन किया है।