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महाकवि ज्ञानसागर के काग्य-एक अध्ययन
(ज) करग्रहारम्भचक्रबन्ध
:कमलामुखीमयमक्षिरश्मिभिः श्रीपरिफुल्लदेहाम्, रसति स्मेयमिमं खलु रमणीधामनिधि स्वाधारम् । ग्रहणग्रहणस्यादी परमो भविनोरभिविश्रम्भम्, भवतु कवीश्वरलोकाग्रहतो हावपरइचारम्भः ॥"
-जयोदय, १०॥१२॥
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FREEMजक
प्रस्तुत चक्रबन्ध के छहों परों में विद्यमान प्रयमाक्षरों को पढ़ने से 'करमहारम्भ' शब्द बनता है । यह शब्द इस बात की सूचना देता है कि इस सर्ग में सुलोचना के पाणिग्रहण संस्कार प्रारम्भ होने का वर्णन है ।