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महाकवि भानसागर के संस्कृत-ग्रन्थों में कलापक्ष
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(ट) सुदृशः कथनं चक्रबन्ध
"सुष्ठु श्रीसहयः स्वरूपकलनं क: रूपातुमीशोऽनकम्, दृष्टोऽनङ्गभवं सुचारुकरणेऽप्यङ्गस्फुरत्सङ्कथः । शस्तेनापि किमायुधेन कलितं व्योम्नः पुनः खण्डनम्, नर्मोक्तो सुगुग्णादतिर्वशमये कल्योऽरथत्वार्थनः ॥"
-जयोदय, १११११५
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प्रस्तुत चक्रबन्ध के छहों मरों में विद्यमान प्रथमाक्षरों को पढ़ने से 'सुस्थः कपनम्' वाक्य बनता है, जिसका अर्थ है कि इस सर्ग में जय कुमार द्वारा मुनोचना के रूप-सौन्दर्य का वर्णन किया गया है ।