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महाकवि मानसागर के संस्कृत-प्रन्थों में कलापक्ष
(ग) स्वयंवरसोमपुत्रागमचक्रवन्ध
"स्वप्रेष्ठं स्मरसोदरं जयनपं तत्रागतं सादरं, .. पत्नाद् गोपुरमण्डलात् स्वयमपोत्सर्गस्वभावाधिपः । वप्तानीय सुपुष्कराशयतनो मप्रभृत्युज्ज्वलं, भक्त्यादात्स्वपुरेऽयमान्तवरदोऽरं कृत्यपः श्रीधरः ॥" ..
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इस पक्रवन्ध के परों के प्रथम एवं छठे अक्षरों को क्रमश: पढ़ने पर'स्वयंवर', 'सोमपुत्रागम' ये दो शब्द निकलते हैं, जिनसे इस बात का संकेत मिलता है कि इस सर्ग में सुलोचना के स्वयंवर की सूचना राजापों को दी गई है। पार निमबर पाकर सोमपुत्र जयकुमार काफी नगरी पच गये हैं।