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महाकवि ज्ञानसागर के काम्य-~एक अध्ययन
(ख) नागपत्तिलम्बचकबन्धः
"नानवमित्यभिधाय रागः समभिगम्य महीपति, गजपत्तनस्य शशंस गहितभायंकः श्लाघापरः । परमार्थवृसेरथ च गद्गद्वाक्यतया भूत्वाशुभ:, भक्तोऽधुना समगच्छदुपसम्मति प्राप्य रतिप्रमः ॥"
-बयोक्य, २२१६०
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इस चक्रवन्ध के अरों के प्रथम प्रारों को क्रमशः पढ़ने पर 'नागपतिमम्म'यह वाक्यांश निकलता है, जो इस बात का द्योतक है कि इस सर्ग में-सर्प ने जयकुमार से वो विनम्र निवेदन किया' उसका वर्णन है ।