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________________ महाकवि भानसागर के काव्य-एक अध्ययन कविवर ने चक्रबन्ध का प्रयोग केवल 'जयोदय' नामक महाकाव्य में किया है। प्रत्येक सर्ग के उपान्त्य श्लोक में उन्होंने चक्रबन्ध प्रयुक्त किये हैं। इसलिए इस काम्य में २८ चक्रवन्ध उपलब्ध होते हैं। इन चक्रबन्धों की यह अभिनव विशेषता है कि इनमें 'जयोदय' महाकाव्य में वरिणत २८ प्रमुख घटनामों का संकेत मिलता है । वे घटनाएं इस प्रकार हैं :- . (क) जयकुमार द्वारा मुनि की उपासना, (ख) रन्तिप्रभ नामक नागपति को जयकुमार से विनम्र प्रार्थना, (ग) दूत द्वारा सुलोचना के विवाह में जयकुमार प्रादि राजामों को मामन्त्रित करना, (घ) राजामों का स्वयंबर की इच्छा से काशी पहुंचना, (ङ) स्वयंवर की तैयारियां होना, (च) विद्या देवी द्वारा राजामों का परिचय एवं सुलोचना द्वारा जयकुमार को जयमाला पहिनाना, (ब) प्रकीति मौर जयकुमार के युद्ध की तैयारियां होना, (ज) पर्ककीर्ति का युद्ध में पराजित हो जाना (झ) काशीनरेश द्वारा सम्राट् भरत के पास क्षमायाचना के लिए दूत को भेवना, (ब) पाणिग्रहण संस्कार प्रारम्भ होना, (2) जयकुमार का सुलोचनारूप वर्णन करना, (8) विवाह सम्पन्न हो जाना, (ड) सुलोचना सहित जयकुमार का गङ्गा नदी के तट पर पहुंचना (ढ) जयकुमार का जलक्रीड़ा करना, (ण) सन्ध्या के पश्चात् रात्रि का प्रागमन, (त) सोमरस का पान करना, (घ) सुरत विहार करना, (द) प्रातःकालीन शोभा, (घ) जयकुमार द्वारा प्रातःकालीन सन्ध्या-वंदन करना, (न) जयकुमार की भरत पक्रवर्ती से भेंट, (प) जयकुमार का हस्तिनापुर पहुँचना, (फ) जयकुमार मोर सुलोचना द्वारा भोगविलास की अनुभूति करना, (ब) पूर्वजन्म का स्मरण एवं दिग्यविभूति की प्राप्ति होना, (भ) जयकुमार पोर सुलोचना द्वारा तीर्थयात्रा करना, (म) जयकुमार के मन में विरक्ति उत्पन्न होना, (य) पुत्र के राज्याभिषेक के बाद जयकुमार का बन को चले जाना, (ब) भगवान् ऋषभदेव द्वारा जयकुमार को उपदेश देना पोर (र) जयकुमार पोर सुलोचना द्वारा मोक्षप्राप्ति । चकबन्ध बनाने की विधि पक्रबन्ध बनाने के लिए श्लोक के चरणों के अक्षरों की संख्या के बराबर गोल पाकार वाले चक्रों को बनाकर उसमें छः परों को स्थापित किया जाता है। मध्य में धुरी होती है । इलोक के प्रथम तीन चरणों को चक्र के मरों में इस प्रकार रखा जाता है कि प्रथम चरण प्रथम परे से होता हुमा चतुर्थ परे में पहुंचता है, द्वितीय चरण द्वितीय प्ररे से पंचम भरे में पहुंचता है, तीनों परणों के मध्य में मार को धुरी में रखा जाता है। चतुर्थ चरण को षष्ठ परे में ही नेमि में शुमा दिया जाता है । इस चरण के सात प्रक्षर मरों में मानकर परों के मध्य में दो-दो पक्षर रखे जाते है।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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