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________________ महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-प्रन्थों में कलापक्ष ३२८ कविवर ज्ञानसागर के काव्यों में ऐसे भी अनेक स्थल हैं जिनमें अलंकारों का सापेक्ष प्रयोग किया गया है । उदाहरण रूप में दो स्थल प्रस्तुत हैं : (क) 'बणिक्पथस्तूपित रत्नजूटा हरि-प्रियाया इव के लिकूटाः । बहिष्कृतां सन्तितमां हसन्तस्तत्राऽऽपदं चाऽऽपदमुल्लसन्तः ॥” - बीरोदय, २१८ (विदेह देश के नगरों में बाजारों की दुकानों के बाहर थोड़ी-थोड़ी दूर पर रत्नों के स्तूपाकार ढेर लगाये गए थे, जो ऐसे प्रतीत होते थे मानों बहिष्कृत प्रापदाओं का उपहास सा करते हुए लक्ष्मी के क्रीड़ा पर्वत हैं ।) प्रस्तुत श्लोक में स्तूपाकार रत्न के ढेरों की उपमा लक्ष्मी के क्रीड़ा पर्वतों से दी गई है; और साथ ही क्रियोत्प्रेक्षा भी है । यह उत्प्रेक्षा उपमा की सहायिका है । अत: परस्पर प्रङ्गाङ्गिभाव होने के कारण यहाँ संकर अलंकार है । "यतः खलु सोऽस्माकं तारुण्यतेजः समुन्नयनाय तरणिरिवोत्तरायणः, सर्वदेवानुकूलाचरण करण-परायणः सुललित-मनोरथ- लता - पल्लवनिमित्तमम्बुधरायणः ।' - दयोदय- चम्पू, २०३१ का गद्यभागः । ( क्योंकि वह हमारे तारुण्य रूपी तेज को उन्नत करने के लिए उत्तरायण में स्थित सूर्य के समान है, सर्वदा अनुकूल प्राचरण करने वाला है, इसलिए हमारी सुन्दर मनोकामना रूपी लता- पल्लब को बढ़ाने वाले जलघर के समान है । प्रस्तुत गद्यभाग में तारुण्य पर तेज का श्रारोप होने के कारण रूपक अलंकार है मोर मृगसेन धीवर के उपमान रूप में सूर्य को प्रस्तुत करने के कारण उपमा अलंकार है । रूपक एवं उपमा परस्पर सापेक्ष अलंकार हैं, इसलिए संकर अलंकार है । चित्रालंकार - 'तच्चित्रं यत्र वर्णानां लड्गाद्या कृतिहेतुता ।' શા श्रीज्ञानसागर ने अपने काव्यों में न केवल शब्दालंकार मोर प्रर्थालंकार प्रयुक्त किए हैं, प्रपित चित्रालंकार भी प्रयुक्त किए हैं। उनके काव्यों के परिशीलन से ज्ञात होता है कि उन्होंने छः चित्रबन्धों में अपना कौशल प्रदर्शित किया है, जो इस प्रकार है - काव्यप्रकाश, (क) चक्रबन्ध, (ख) गोमूत्रिकाबन्ध, (ग) यानबन्ध, (घ) पद्मबन्ध, (ङ) तालवृन्तबन्ध और (च) कलशबन्ध । क्रमशः ये चित्र प्रस्तुत किये जा रहे हैं :
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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